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________________ २२ अपनी-अपनी दृष्टि श्रीकृष्ण के अनेक गुणो मे एक विशेष गुण था, उनकी गुण-ग्राहकता। सामान्य से सामान्य वस्तु हो, साधारण से साधारण प्राणी हो, किन्तु कृष्ण थे कि उस वस्तु अथवा प्राणी मे से भी कोई न कोई गुण खोज ही लेते थे। दृष्टि की बात है। देखने वाली ऑख चाहिए। वह देखने वाली आँख हो तो बुराई मे भी कही छिपी हुई कोई अच्छाई दीख जाती है। ऐसी दृष्टि श्रीकृष्ण के पास थी। देवेन्द्र इन्द्र ज्ञानी थे। वे इस रहस्य को जानते थे। उन्होने सोचादेवताओ का ध्यान इस ओर दिलाना चाहिए। एक बार अपनी सभा मे उन्होने कहा __ "श्रीकृष्ण वडे गुणग्राही है। संसार मे उनके समान गुणग्राही व्यक्ति अन्य कोई भी नहीं । गुणग्राहकता की ऐसी उच्च भूमि पर वे है कि बुरी से बुरी वस्तु मे से भी वे अच्छाई देख लेते है।" एक देवता चल पडा इस बात की परीक्षा लेने । एक मनुष्य की ऐसी प्रशसा उससे सुनी न गई। उस समय श्रीकृष्ण भगवान अरिष्टनेमि के दर्शन करने रैवताचल पर्वत की ओर जा रहे थे, सदल बल । वह देव उसी मार्ग पर एक मृत, काले कुत्ते का रूप धारण करके पड़ गया । सडा हुआ दुर्गन्धयुक्त शरीर, कीडे कुलबुला रहे है, फटे मुख से रक्त
SR No.010420
Book TitleMahavira Yuga ki Pratinidhi Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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