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पांचवां अधिकार ॥ ५॥ हरिषेणराजाको मुनिके पास जिनदीक्षा लेना तपके प्रभावसे दसवें स्वर्गमें देव होना उस देवको सुमित्रराजाके घर प्रियमित्र नामका
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१०.
चक्री पुत्र होना उसके चक्रादिरत्नोंका प्रगट होना उस चकीका क्षेमंकर केवलीके उपदेससे मुनि होना ३२ तपके फलसे उसको बाखें स्वर्गमें जन्म लेना उस देवको नंदिवर्धनराजाके घर नंद नामका पुत्र होना
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२७ २८
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स्वमका फल तीर्थकर पुत्र होना जान बहुत प्रसन्नता ४८ इंद्रकर भेजी हुई देवियोंको माताकी सेवा करना २९ उस अच्युत नामा सोलवें स्वर्गके देवको उन महारानीके गर्भ में तीर्थकरस्वरूपसे आना सौधर्म इंद्रा आना और गर्भकल्याणकका
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छठा अधिकार ॥ ६ ॥ उस नंदराजाको प्रोष्टिल मुनिके उपदेशसे जिनदीक्षा लेना ३५ फिर तीर्थकर पदको देनेवाली सोलह कारण भावनाओंको चितवन करना ३७ महान् तपके फलसे नंदमुनिको सोलवें स्वर्गमें इंद्र होना ३९ सातवां अधिकार ॥ ७ ॥ कुंडलपुर नगरका वर्णन उस नगरके स्वामी श्री सिद्धार्थमहाराजका वर्णन उनकी महारानी त्रिसला ( प्रियकारिणी ) का वर्णन ४५ अंतके ( चौवीसवें ) तीर्थकर होनेवाले श्री
महावीर प्रभुके गर्भ में आने से छह महीने पहले श्री सिद्धार्थमहाराजके रन वगैरह की वर्षा होना "
श्री त्रिसला महारानीको सोहलस्वप्नोंका दीखना ४५ उन स्वप्नोंका फल महाराजसे पूछनेको महारानीका राजसभामें जाना
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उत्सव करना
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आठवां अधिकार ॥ ८ ॥ देवियोंको जिनमाताकी सेवाकरना देवियोंक प्रश्न और जिनमाताके उत्तर तीर्थंकर का जन्म
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सौधर्म इन्द्र स्नान करानेके लिये प्रभुको सुमेरु पवर्तपर ले गया नवम अधिकार ॥ ९ ॥ तीर्थकर प्रभुको क्षीरसमुद्रके जलसे स्नान करना फिर स्तुतिकरके महावीर और वर्धमान ये दो
नाम रखना
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इंद्र का जन्मकल्याणके उच्छव में नृत्य करना दशव अधिकार ॥ १० ॥ देवदेवियोंको महावीर प्रभुकी सेवा करना
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