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________________ म. वी. शादि द्वारा दर्शनादि गुणोंमें फिर स्थिर करना ऐसे · स्थितीकरण' अंगको आचरता? पु. भ हुआ। अपने शरीरादिकमें प्रीतिरहित है तौभी साधर्मीभाइयोंसे गौ वच्छेकीसी अति॥३७॥ प्रीति रखना ऐसे वात्सल्यगुणको वह पालता हुआ। वह मुनि तप और ज्ञानकी किर। णोंसे मिथ्यात्वरूप अंधकारको दूरकरता हुआ जैनधर्मके महात्मको प्रकाशकर 'प्रभावना' ।। गुणको पालता हुआ। . इन आठ गुणोंसे सम्यग्दर्शनको पुष्ट करता हुआ वह संजमी राजाकी तरह। कर्मरूपी वैरियोंका नाश करता हुआ । धर्मकी नाशक पापकी खानि ऐसी देवमूढता, लोकमूढता गुरुमूढता रूप तीन प्रकारकी मूढता सर्वथा छोड़ता हुआ । जाति कुल ऐश्वर्य । (धन) रूप ज्ञान तप वल पूजा ये आठ तरहके मद खोटे मार्ग में लेजानेवाले हैं । यह र है. मुनि जाति आदि श्रेष्ठ गुणोंवाला भी सव जगत्को अनित्य जानता हुआ इन आठोंका है 2 मद कभी नहीं करता था । मिथ्यादर्शन मिथ्याज्ञान मिथ्याचारित्र और इनके धारक-8 इसतरह छह प्रकारके अनायतनोंको नरकके देनेवाले समझ मनवचन कायसे छोड़ता हुआ। वह मुनि निःशंकादि गुणोंके उलटे शंकादि आठ दोषोंको सर्वथा छोड़ता हुआ। इसप्रकार वह मुनि ज्ञानरूपीजलसे सम्यक्त्वके पच्चीसमलोंको धोकर उसको निर्मल ॥ ३७ ६ करता हुआ ' दर्शन विशुद्धि' भावनाका पालन करता हुआ । वह मुनि, संवेग वैराग्य
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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