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म. वी. लगा । सव पर्वदिनोंमें आरंभ रहित उपवास करता हुआ वह नंदराजा मुनियोंको भक्ति । पु. भा.
पूर्वक प्रतिदिन आहारादि दान देता था। अपने जिनालयमें जिनेन्द्रदेवकी महान पूजा [...] करता था और धर्मकी वढवारीके लिये अहंत गणधरादि योगियोंकी यात्रा करनेको जाता
था। धर्मसे वांछित अर्थकी प्राप्ति होती है, अर्थ (धनादि) से इच्छत संसारीक सुख मिलता ४) है और संसारिक सुखकी इच्छाके त्यागसे अविनाशी सुखकी प्राप्ति होती है। इस प्रकार । समस्त सुखका मूल. (मुख्य ) कारण धर्मको जानकर इस लोक और परलोक दोनोंमें । सुखकी प्राप्तिके लिये श्रेष्ठ धर्मको सदा सेवता हुआ। ही आप शुभआचरण पालता था, दूसरोंको प्रेरणा करता था और पालनेवालेकी
खुशी मनाता था। धर्मके फलसे प्राप्त हुए महान भोगोंको भोगता हुआ सुखसे काल हैं, विताता हुआ । इस प्रकार शुभके परिपाकसे नंद राजा निर्मलचारित्रके संबंधसे अनेक
तरहके उत्तम भागोंको भोगता हुआ। ऐसा समझकर हे भव्यो तुम भी जो सुख चाहते हो तो जिनधर्मको यत्नसे पालो, धर्म ही कल्याण करनेवाला है।
इस प्रकार श्रीसकलकीर्तिदेव विरचित महावीर चरित्रमें देवादि चार शुभभवोंको कहनेवाला पांचवां अधिकार पूर्ण हुआ ॥ ५ ॥
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