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म. वी.
॥१७॥
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अधिक काट लेनेसे भी अधिक वेदनावाली है। ऐसी पृथ्वी के स्पर्शसे दुखी हुआ १२० कोश ऊपर उछलकर फिर पत्थर और कांटों से भरी हुई पृथिवीपर गिरा । तदनंतर दीन हुआ वह मारने को आये हुए नारकियोंको देख तथा सवतरहके दुःखों को देनेवाले उस | क्षेत्रको देखकर ऐसा विचारता हुआ ।
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पु. भा.
अ. ३
देखो अचंभे की बात है कि ऐसी खराव पृथ्वी यह कौनसी है कि जिसमें सभी दुःख भरे हुए हैं और ये दुष्ट नारकी कौन हैं जो कि दुख देनेमें बहुत चतुर हैं। मैं | कौन हूं और यहां अकेला कैसे आया । कौंनसा खोटा कर्म इस भयंकर स्थानमें मुझे ले |आया है इत्यादि विचार कर रहा था इतनेमें उसको विभंगा ( खोटी ) अवधि हुई। | उससे अपनेको नरकमें पड़ा हुआ जान ऐसा विलाप करने लगा ।
अहो मैंने पहले जन्ममें अनेक जीवोंको मारा और झूठ तथा कठोर वचन दूसरोंको | कहे । मुझ पापीने लोभके वश होकर पराई लक्ष्मी तथा स्त्री वगैरः वस्तुएँ जबरदस्ती हरके सेवन कीं ( भोगीं ) और धन बहुत इकट्ठा किया । मैंने पांच इंद्रियों के वशमें होकर नहीं खाने योग्य पदार्थ खाये, नहीं सेवने योग्य पदार्थ सेवन किये और नहीं पीने योग्य चीज़ों को पिया । इस बात बहुत कहने से कुछ लाभ नहीं मुझ दुर्बुद्धिने ॥१७॥ पहले जन्म में बड़े २ सब पाप कर डाले जो कि मेरा नाश करनेवाले हैं ।