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म. वी. ही दो विद्या विधिके अनुसार देता हुआ । इस विवाहादिकी बातको वह प्रतिनारायण
अश्वग्रीवराजा दूतके मुखसे सुनकर एकदम क्रोधामिसे जलता हुआ। बहुत विधाधर-11 ॥१६॥
राजाओंको साथ लेकर सेनाके साथ युद्ध करनेके लिये चक्ररतसे शोभायमान वह राजा रथनूपुरके पर्वतपर आता हुआ ॥ इधर उसके आगमनकी खवर सुनके त्रिपृष्ट ।। भी अपने कुटुम्बियों के साथ चतुरंग सेनाको लेकर पहले ही से पहुंच गया था। फिर | उन दोनोंका बड़ा भारी युद्ध हुआ उसमें होनहार चक्री त्रिपृष्टने हय ( अश्व ) ग्रीवको
अपने पराक्रम से जीत लिया । फिर उसने क्रोधसे दैवी शस्र चक्ररतको त्रिपु-, एके मारनेके लिये चलाया, वह चक्र भी उस त्रिपृष्टके महान् पुण्यके उदयसे प्रदक्षिणा । देकर उसकी दाहिनी गुजा पर आकर विराजमान होगया। उसके बाद त्रिपृष्ठ भी तीनहा खंडकी लक्ष्मीको वशमं करनेवाले तथा दुश्मनको भयके देनेवाले चक रत्नको अत्यंत है। है। क्रोधसे उसके ऊपर फेंकता हुआ। फिर उस चक्रसे अश्वग्रीवकी मौत होगई और रौद्रपरिणामसे तथा पहले बहुत आरंभ परिग्रहके एकत्र करनेसे नरकायु बांधकर यह दुर्बुद्धि अश्वग्रीच महापापके उदयसे सातवें नरकम गया। जो नरक सब दुःखोंकी खानि है। जिसमें सुख रंचमान भी नहीं है तथा घृणाका स्थान है।
॥१६॥ अयानंतर वह त्रिपृष्ट उस अश्वग्रीनके जीतनेसे जगतमें कीति (नाम ) पाकर उस