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म. वी. तृप्त न हुआ तो दुःखको उत्पन्न करनेवाले ऐसे दुष्ट भोगोंसे सज्जनोंको क्या फायदा
है है। अपनी स्त्रीके अंगको मर्दन करनेसे उत्पन्न हुए ये भोग मानके नाश करनेवाले
होते हैं तो स्वाभिमान रखनेवाले मानी पुरुष सवको दुःख देनेवाले भोगोंकी क्यों वांछा। ॥१३॥
१ करते हैं, नहीं करनी चाहिये । ऐसा विचार उस विशाखनंदको बुलाकर शीघ्रही उसे । वनको सुपुर्द कर वह कुमार राज्यलक्ष्मी छोड़कर श्रीसंभूतगुरुके पास गया । वहां मुनी
श्वरके चरणकमलोंको नमस्कार कर सब परिग्रहको छोड़ सबसे वैराग्यको प्राप्त हुआ वहीं, विश्वनंदी तपको धारण करता हुआ। देखो लोकमें कहीं २ नीच पुरुपोंकर किया। गया अपकार भी हथियारसे चीरा लगानेवाले वैद्यकी तरह सज्जनोंको महान उपकारका करनेवाला हो जाता है। .
उसके बाद विशाखभूति राजा भी महान् पछतावा करके अपनेको वहुत निंद? कर उसी समय संसार शरीर भोगोंसे उदास होके उसी मुनीश्वरके पास जाके मन,
वचन कायसे सब परिग्रह छोड़ प्रायश्चित्तके समान जिनदीक्षाको ग्रहण करता हुआ | 9 फिर अत्यंत निष्पाप अति कठोर तपको अपनी शक्तिके अनुसार बहुत कालतक आच8 रण कर मृत्युके समय संन्यास ( समाधिमरण ) को धारण किया। उसके फलसे दशवें । १ ॥१३॥ ५ महाशुक्र नामके स्वर्गमें वह विशाखभूति संयमी महान् ऋद्धिका धारी धर्मात्मा देव हुआ।