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हुआ । फिर मिथ्यामतियोंको मानता हुआ मंदकषायसे देवायुको वांध प्राणरहित होता हुआ पुनः उसी पहले सौधर्मस्वर्ग में एकसागर की आयुवाला अपने योग्य सुख संपदा से भूषित जन्म लेता हुआ ।
इस भरतक्षेत्रमें श्वेतिक नामके नगरमें अग्निभूति ब्राह्मण रहता था उसकी स्त्रीका नाम गौतमी था । उन दोनोंके वह देव स्वर्गसे चयकर कर्मोदयसे अग्निसह नामका पुत्र हुआ और अपने एकांत मतके शास्त्रों का ज्ञाता होता हुआ । फिर पूर्वकृत कर्मोदयसे परिव्राजक दीक्षाको धारण कर आयुके क्षय होनेपर मरणको पाता | हुआ। उस अज्ञानतपत्रे क्लेशसे सानत्कुमार नामके तीसरे स्वर्ग में वह देव उत्पन्न हुआ । वहां पर भोगादि सामग्री सहित सात सागरकी आयु पाई ।
इस भरत क्षेत्र में मंदिर नामके श्रेष्ठ नगर में गौतम नामका ब्राह्मण था । उसके घर वह देव स्वर्गसे चयकर अग्निमित्र नामका पुत्र हुआ । वह खोटे शास्त्रोंका पारगामी मिथ्यादृष्टि होता हुआ । फिर पूर्वजन्मके संसारसे पहली त्रिदंडी दीक्षाको धारण कर शरीरको कष्ट देता हुआ अपनी आयुके पूर्ण होनेपर मरणको प्राप्त हुआ। पहलेके अज्ञान तपके प्रभाव से माहेंद्रनामके पांचवें स्वर्ग में अपने योग्य आयु | संपदा तथा देवियोंसे शोभायमान देव हुआ ।