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________________ ..म. वी./ सुखकेलिये उठालेता है उसी तरह मैंने भी धर्म समझ कर इस मिथ्यात्वरूपी महान पापको धारण किया । धूौकर रचे हुए अज्ञान मिथ्यात्वमार्गके द्वारा अनंते मूर्ख घोर / १३९॥ नरकमें पटके जाते हैं। । जैसे मदिरासे वावले पुरुप भिष्टाके घरमें गिर पड़ते हैं उसीतरह सम्यग्दर्शनसे हारहित मिथ्यादृष्टि अशुभ मार्गमें गिर जाते हैं। जैसे मार्गमें चलते हुए अंधे पुरुप कुएमें। गिर पड़ते हैं उसी तरह मिथ्यात्वसे अंधे पुरुप नरकादिरूप अंधे कुएमें गिर पड़ते हैं। S/मैं ऐसा समझता हूं कि मिथ्यात्वरूपी खोटा मार्ग बहुत खराव है दुष्टोंको नरकमें लेS/जानेके लिये संगका साथी है शठ पुरुषोंसे आदर किया गया है सम्यक् दर्शन ज्ञान चरित्र धर्मादि राजाओंका. शत्रु है जीवोंको खानेके लिये अजगर सांप है और महान है। पापोंकी खानि है। जैसे गौके सींगसे दूध, बहुत पानीके मथनेसे घी; खोटे व्यसनोंसे तारीफ़, कंजूसपनेसे प्रसिद्धि और खोटे कार्य करनेसे धन कभी नहीं मिलता उसीतरह मिथ्यातसे । हा अज्ञानियोंको शुभ वस्तु सुख और उत्तमगति- ये सब नहीं मिल सकते । हे प्राणियो! ॥१३९। मिथ्यात्त्वके आचरणसे धर्मरहित मिथ्यादृष्टि केवल महादुःखस्वरूप नरकमें ही जाते हैं Series
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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