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कन्छन्डन्न्न्छ
पहलेके भ्रष्ट हुए वे कच्छादि बहुतसे पाखंडी उस प्रभुसे बंधमोक्षका स्वरूप सुन- 18 कर वास्तवमें निग्रंथ भावलिंगी होते हुए। परंतु दुष्ट बुद्धि मरीचि.तीन जगत्के स्वामीसे मोक्षका उत्तम मार्ग सुनकर भी संसारका कारण अपने मतको नहीं छोड़ता हुआ।मनमें ऐसा विचारता हुआ कि जैसे यह तीर्थनाथ गृहादिको छोड़कर तीन जगत्को क्षोभ करनेवाली सामर्थ्यको प्राप्त हुआ है वैसे मैंभी अपने मतको स्थापन करके लोकमें महान् शक्तिवाला हो, सकता हूं।इस लिये मैं भी जगत्का गुरु हो जाऊं ऐसी इच्छा है वह अवश्य पूर्ण होगी। इस प्रकार मान कपायके उदयसे अपने स्थापित मिथ्यामतसे विरक्त नहीं हुआ। वह पापबुदि मूर्ख मरीचि त्रिदंडीके भेषको धारण कर कमंडलु हाथमें लेकर कायको क्लेश देनेमें तत्पर प्रातःकालमें ठंडे जलसे स्नान करता हुआ तथा कंदमूलादिका भक्षण करता हुआ। बाह्य है |ग्रहादि परिग्रहके त्यागसे अपनेको प्रसिद्ध करता हुआ। और अपने शिष्य कपिलादिकोंको है सच्चे मतको इंद्रजालके समान तथा निंदनीक और अपने कल्पित मतको यथार्थ (सच्चा) बतलाता हुआ। वह मिथ्यामार्ग चलानेमें अग्रणी (मुख्यनेता) भरतका पुत्र मरीचि है आयुपूर्ण होनेसे मरणको प्राप्त हुआ। फिर वह अज्ञान तपके प्रभावसे ब्रह्मनामके पांचवें है स्वर्गमें देव हुआ वहाँ दश सागरकी आयु मिली और भोगने योग्य संपदाओंकी प्राप्ति हुई।
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