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________________ 1. वी उमकी चारों दिशाओं दैदीप्यमान सोनेके खंभे शोभायमान थे जो लटकतीं| पु. भा. हुई रत्नोंकी मालाओंसे भूषित थे। उसके अंदर कुछ चलकर चार वेदियां थीं जो २६॥णापूजाकी द्रव्यसे पवित्र थीं। वे चार बाहरके दरवाजोंसहित तथा तीन परकोटोंवाली||l. १४ और रमणीक सोलह सोंनेकी सीढियोंसहित थीं। उनके वीचमें जिनेन्द्रकी प्रतिमासहित सिंहासन थे जो कि रत्नोंके तेजसे अत्यंत शोभा देते थे। उनके वीचमें चार छोटे M२ सिंहासन थे। उन वेदियोंके मध्यभागमें चार मानस्तंभ थे उनका नाम मिथ्याह-18 हटियोंका मान भंग करनेसे सार्थक था । | वे मानस्तंभ सोनेके थे और ध्वजा घंटा गीत नृत्य वगैरःसे रमणीक मालूम होते नथे । उनके मध्यभागमें मस्तक पर तीन छत्र धारण किये जिनेन्द्रकी प्रतिमायें थीं। उनके || समीपकी पृथ्वीपर कमलोसहित चार वावड़िये चारों दिशाओंमें थीं वे रत्नोंकी सीढि-12 योसे अति सुंदर मालूम होती थीं। उनके नंदोत्तरा आदि नाम थे, वे लहरोंरूपी हाथोंसे और भोरोंकी गुंजारसे नाचतीं गाती हुई मालूम पडती थीं। उन वांवड़ियों के किनारे जलके भरे हुए कुंड थे जो कि यात्राके लिये आये mean हुए भव्य जीवोंके पैर धोनेके लिये थे। वहांसे चलकर थोड़ी दूर पर जलकी भरी हुई। खाई थीं वे कमलों व भोरोंसे शोभायमान थीं। वह खाई हवाके धक्केसे उठी हुई तरं
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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