SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्धिके लिये ध्यान करते हुए || अठारह हजार शीलरूपी बख्तर पहने हुए चौरासी लाख गुणोंसे भूषित महाव्रत अनुभेक्षा शुभ भावनारूपी वस्त्रसे सजे हुए संवेगरूपी गजराजपर पर चढे हुए चारित्ररूपी युद्धभूमिमें खड़े रत्नत्रयरूपी महावाणों को धारण किये हुए तपरूपी धनुषको हाथमें लिये ज्ञान दर्शनरूपी फणिच चढाए हुए गुप्ति | आदिसेनासे घिरे तथा अन्य भी सामग्री से शोभायमान महान् योधा वे महावीर प्रभु बहुत दुष्ट कर्मरूपी शत्रुओंको मारनेके लिये शीघ्र ही उद्यम करते हुए । उसमें सबसे पहले कर्मोके नाशक शरीर रहित ऐसे सिद्धोंके सम्यक्त्वादि आठ गुणों को मोक्षके लिये चाहते हुए वे प्रभु ध्यान करने लगे । जो सिद्धोंके गुणोंको चाहनेवाले हैं उन्हें क्षायिक सम्यक्त्व अनंत केवलज्ञान केवल दर्शन अनंतवीर्य सूक्ष्मत्व अवगाहन अगुरुलघु अव्यावाध इन आठ उत्तम गुणोंका ध्यान हमेशा करना चाहिये | फिर वे विवेकी प्रभु निर्मलचित्त से सदा आज्ञाविचय आदि चार महान धर्मध्यानोंका चिन्तवन करते हुए । पहली चार कषाय मिथ्यात्वकी तीन प्रकृति तिर्यंचायु ||देवायु नरकायु ये दश कर्मरूपी वैरी इस प्रभुके चौथेसे सातवें गुणस्थान में ठहरने पर डरके मारे आपही नष्ट हो गये। उन बड़े कर्मरूपी वैरियोंके नाश करनेसे जयको प्राप्त वे महावीर प्रभु उत्तम योधाके समान हुए शुक्ल ध्यानरूपी महान हथियार लिये मोक्ष
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy