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म. वी. सुननेमें उत्कंठित हों, शास्त्रके कथनको धारण करनेमें समर्थ हो, जिनेंद्रके मतमें लीन हों, पु. भा.
काअईतके भक्त हों, सदाचारी हों, निग्रंथ धर्मगुरुके सेवक हो, पदार्थके स्वरूप विचार॥३॥ नमें कसौटीके समान चतुर परीक्षक हों, आचार्यके कहे हुए शास्त्रोंका अध्ययन कर
६ सार असार विचार पहले जो असार ग्रहण किया था उसको छोड़कर सत्यको है ||ग्रहण करनेवाले हों, आचार्यकी कहीं भूल रहजाने पर जो विवेकी विलकुल नहीं हंसने । वाले हों ऐसे श्रोता तोते मट्टी हंस जलके समान दोपरहित गुणोंके धारी कहे गये हैं। इत्यादि और भी अनेक श्रेष्ठ गुणोंके धारी शुभ अभिप्रायवाले श्रोता दूसरे | शास्त्रोंसे जानना। । श्रेष्ठ कथाका लक्षण-जिस कथा ( उपदेशमै ) जीवादि सात तत्व अच्छी तरह दिखलाये जावें और संसार देह भोगोंसे अंतमें वैराग्य दिखलाया जावे । जिस कथामें दान पूजा तप शील व्रतादि तथा उनके फल व बंध मोक्षका स्वरूप और
उनके कारण कहे जायें, जिस धर्मकी माता जीवदयाके प्रसादसे बुद्धिमान् सब ||परिग्रहको त्यागकर स्वर्ग तथा मोक्ष जाते हैं ऐसी जीवदया जिस कथामें मुख्यतासे कही।
गई हो । जिस कथामें महान पदवीधारक मोक्षगामी प्रेसठ शलाका पुरुपोंका चरित्र व ॥३॥ उनकी विभूतियोंका कथन हो और उनके पूर्व जन्मोंके वृत्तांत हो तथा पुण्यकर्मके फलोंका