SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ग्यारवां अधिकार ॥ ११ ॥ - लन्डन्न्न्न्क 'वंदे वीरं महावीरं कर्मारातिनिपातने । सन्मतिं स्वात्मकार्यादौ वर्धमानं जगत्रये ॥१॥ भावार्थ-कर्मरूपी वैरियोंको नाश करनेमें महाबलवान्, अपने आत्माका कल्याण करनेमें श्रेष्ठ बुद्धिवाले तीन जगतमें जिनका सन्मान बढा हुआ है अर्थात जिनको तीन लोकके स्वामी पूजते हैं ऐसे श्रीमहावीरस्वामीको मैं नमस्कार करता हूं। । अथानंतर वे महावीर प्रभु अपने वैराग्यको बढानेके लिये इन बारह भावना-2 शाओंको विचारते हुए। वे ये हैं-अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, वोधिदुर्लभ और धर्मानुप्रेक्षा-इस प्रकार बारह भावना हैं, ||2|| जो कि वैराग्यको पुष्ट करनेवाली हैं। अनित्य भावना-इस तीन लोकमें आयु तो हमेशा यमराजसे घिरी हुई है, ISजवान अवस्था बुढापेके मुंहमें है, शरीर रोगरूपी सर्पका बिल है और इंद्रियसुख क्षण विनाशी है । इत्यादि जो कुछ सुंदर वस्तु दीखनेमें आ रही है वह सब कर्मोंसे उत्पन्न लन
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy