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________________ - फेद छत्रको अपने हाथसे लगाता हुआ। सानत कुमार और माहेंद्र ये इंद्र भगवानके ऊपर क्षीरसमुद्रकी तरंगके समान चमर ढारते हुए धर्मके नायककी सेवा करने लगे। उस III समय जिनेंद्रकी उत्कृष्ट सम्पदाको देख कितने ही देव इंद्रके वचन प्रमाण ( सच्चे Dil IMमानकर अपने मनमें सम्यग्दर्शनको धारण करते हुए। वे इंद्र वगैरः ज्योतिश्चक्रको लाकर अपने शरीरके आभूषणोंकी किरणोंसे आकाशमें इंद्रधनुषको मानों फैलाते जाते हुए।||३|| वे देवोंके पति उत्तम सैकड़ों महोत्सवोंके साथ तथा महान विभूतिके साथ बहुत Hal ऊंचे सुमेरु पर्वतपर पहुंचते हुए। उस मेरु पर्वतकी ऊंचाई पृथ्वीसे एक हजार कम लाख योजनकी है। उसकी पहली कटनीपर भद्रशाल वन है वह तीन परकोटे ध्व-15 जाओंसे और चार महान जैनमंदिरासे शोभायमान कल्याण करनेवाला है। उस भद्र शालवनकी जमीनसे दो हजार कोस ऊंचाईपर नंदनवन है उसमें भी सुवर्ण रत्नमयी चार जिनचैत्यालय हैं। उस नंदनवनसे साढे बासठ हजार योजनकी उंचाईपर महारमणीक सौमनसवन है उसमें सव ऋतुओंके फल देनेवाले एकसौ आठ वृक्ष तथा चार जिनचैत्यालय हैं। | फिर सौमनस वनसे छत्तीस हजार योजनकी उंचाईपर अंतका चौथा पांडुकवन । हा है। वह वृक्षोंको समूहसे, ऊंचे चार जिनचैत्यालयोंसे तथा शिला सिंहासन वगैरहसे बहुत - ल
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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