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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में भाषा है उसे खोल दें तो बड़े रहस्य के पर्दे उठने लगते हैं। जैसे अब गांधी की हमने मरणतिथि मनानी शुरू की है। वह पश्चिम की नकल है। अगर महावीर जैसे व्यक्ति का हम मृत्युदिन मनाते भी हैं तो उसे मृत्यु दिवस हम नहीं कहते हैं । उसे निर्वाण दिवस कहते हैं। मरता नहीं, वह सिर्फ निर्वाण को उपलब्ध हो जाता है । उसको भी मृत्युदिवस नहीं कहते हैं । उसको भी कहेंगे निर्वाणदिवस । तथ्यों ने ऐसी व्यर्थ की बातों में उलझा दिया है कि जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है और उनके समक्ष वे लोग जो निरंतर सत्य पर जोर देते रहे हैं आज इस तरह हारे हुए खड़े हैं और वे हारे इसलिए खड़े हैं कि वे खुद ही तथ्य से हार गए हैं और उनको भी लग रहा है कि कोई बड़ी भूल-चूक हो गई है। मेरी दृष्टि में तथ्यों का भी मूल्य है अगर वे सत्यों को बता पाएं, अन्यथा उनका कोई मूल्य नहीं है। शाश्वत की तरफ इनसे इशारा हो जाए तो ठीक है अन्यथा कोई भी मूल्य नहीं है। मील के पत्थर हैं जो हमें कहते हैं आगे चलो लेकिन कुछ नासमझ लोग मील के पत्थरों को पकड़कर रुक जाते हैं। मील के पत्थरों का क्या मूल्य है सिवाय कि वे कहें कि और आगे और आगे। तथ्य भी मील के पत्थर हैं सत्य की यात्रा में और इसलिए अगर महावीर के जीवन की प्रारंभिक सारी घटनाओं को उनकी गहराई में उनकी खाल को छोड़कर उनके सार को पकड़ लिया जाए तो ही महावीर का उद्घाटन होगा और तो ही बाद में महावीर क्या हो पाते हैं यह समझ पायेंगे, और उसको समझने को दृष्टि मिल सकती है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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