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________________ महावीर के जन्म से लेकर उनकी साधना के काल के शुरू होने तक कोई स्पष्ट घटनाओं का उल्लेख उपलब्ध नहीं है। यह बड़ी महत्वपूर्ण बात है। जीसस के जीवन में भी पहले तीस वर्षों के जीवन का कोई उल्लेख नहीं है । इसके पीछे बड़ा महत्त्वपूर्ण कारण है। महावीर जैसी आत्माएं अपनी यात्रा पूरी कर चुकी होती हैं पिछले जन्म में ही, घटनाओं का जो जगत् है, वह समाप्त हो चुका होता है। इस जन्म में उनके आने की जो प्रेरणा है उनकी स्वयं की कोई वासना उसमें कारण नहीं है। सिर्फ करुणा कारण है। जो उन्होंने जाना है, जो उन्होंने पाया है उसे बांटने के अतिरिक्त इस जन्म में उनका अब कोई काम नहीं। ठीक से समझें तो तीर्थकर होने का अर्थ है ऐसी आत्मा जो अब सिर्फ मार्ग दिखाने को पैदा हुई हो। और जो अभी स्वयं ही मार्ग खोज रहा हो वह मार्ग नहीं दिखा सकता। जो खुद ही अभी मार्ग खोज रहा है उसके अभी मार्ग बनाने का कोई अर्थ नहीं। क्योंकि मार्ग क्या है, यह मार्ग पर चलने से नहीं, मंजिल पर पहुंच जाने से पता चलता है। चलते समय तो सभी मार्ग ठीक मालूम होते हैं जिन पर हम चलते हैं, वही मार्ग ठीक मालूम पड़ते हैं । और चलते समय कसोटी भी कहा है कि जिस मार्ग पर हम चल रहे हैं, वह ठीक होगा। क्योंकि मार्ग का ठीक होना निर्भर करेगा मंजिल जाने पर । मार्ग के ठीक होने का एक ही अर्थ है कि जो मंजिल मिला दे। लेकिन यह पता कैसा चलेगा मंजिल मिलाने के पहले कि इस मार्ग से मंजिल मिलेगी । यह तो उसे ही पता चल सकता है जो मंजिल पर पहुंच गया है । लेकिन जो मंजिल पर पहुंच गया है, उसका मार्ग समाप्त हो गया है। और मंजिल पर पहुंच जाना इतना कठिन नहीं है जितना मंजिल पर पहुंच कर मार्ग पर लौटना । साधारणतः कोई भी कारण नहीं मालूम देता कि जो मंजिल पर
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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