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________________ महावीर : मेरी हों तो हम अंधकार को काकर दिए के अपर अल सकते है; दिए को बुमना पड़ेगा। नहीं, बंधकार विरोधी नहीं है प्रकाश का, अंधकार बमाव है प्रकाश का अभाव बोर विरोध में कुछ फर्क है। विरोधी का अस्तित्व होता है, अभाव का अस्तित्व नहीं होता। अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं होता प्रकाश का अस्तित्व है। अगर अंधेरे के साथ कुछ करना हो तो सीधा अंधेरे के साथ कुछ नहीं किया जा सकता। न तो अंधेरा लाया जा सकता है न निकाला जा सकता है। नहीं तो दुश्मन के घर में हम अंधेरा फेंक आएं । कुछ भी करना हो बंधेरे के साथ तो प्रकाश के साथ करना पड़ेगा। अंधेरा लाना हो तो प्रकाश बझामा पड़ेगा। बंधेरा हटाना हो तो प्रकाश जलाना पड़ेगा। इसलिए जब यहां अंधेरा मिटता है तो प्रकाश हो जाता है। हम कहते है, अंधेरा मिट गया, इससे ऐसा लगता है जैसे अंधेरा था। लेकिन अंधेरा है सिर्फ प्रकाश का अभाव । प्रकाश या गया-इतना सार्थक है। और प्रकाश मा गया तो बंधेरा कैसे रह सकता है ? वह अब नहीं है । न वह कभी था। महावीर निषेषात्मक अहिंसा शब्द का प्रयोग करते है। वह कहते है कि हिंसा है, हिंसा में हम बड़े हुए है। हिसान हो जाए तो बो शेष रह जाएगा उसका नाम अहिंसा है। लेकिन अगर किसी ने अहिंसा को विधायक बनाया तो वह हिंसक रहते हुए अहिंसा सापने की कोशिश करेगा । हिंसक रहेगा. मोर अहिंसा साधेगा । हिंसक के द्वारा अहिंसा कभी नहीं सामी जा सकती। और अगर साप भी लेगा तो उसकी अहिंसा में हिंसा के सब तत्व मौजूद रहेंगे। वह अहिंसा से भी सताने का काम शुरू कर देगा। इसलिए मैं गांधीजी की अहिंसा को अहिंसा नहीं मानता है। गांधीजी को अहिंसा उस अर्थ में अहिंसा नहीं है जिस अर्थ में महावीर की हिंसा है। गांधीजी की अहिंसा में भी दूसरे को दबाने, दूसरे को बदलने, दूसरे को मिन्न करने का आग्रह है। उसमें हिंसा है। अगर हम ठीक से कहें तो नापीजो की अहिंसा अहिंसात्मक हिंसा है । मैं आपकी छाती पर छुरी लेकर खड़ा हो जाऊँ और कहूँ कि जो मैं कहता हूँ वह ठीक है, आप उसे मानें तो यह हिंसा है। मीर में अपनी अती पर छुरी लेकर खड़ा हो जाऊं और कई कि जो ठीक है यह माने नहीं तो मैं छुरी मार दूंगा, यह अहिंसा कैसे हो पाएगी? . ___ अनशन कैसे बहिंसा हो सकता है ?. सत्याग्रह कैसे अहिंसा हो सकता है ? उसमें एवरे पर वगाव गलने वा पाव पूरी रह उपस्थित है।सर्फ दबाव पाने का रंग बदल गया है । एक मामी कहना है कि भूखा मर जाम
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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