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________________ समापन-प्रवचन-२६ नहीं हो सकता है क्योंकि बढई के बेटे बोर ईश्वर के बेटे में बहुत फर्क है। इससे ज्यादा फर्क क्या हो सकता है। फिर भी मैं कहूंगा कि उन्होंने बढई का बेय हो देखा वे पहचान नहीं पाए उस आदमी को जो बढई से आया था, लेकिन बाई का बेटा नहीं था। इसका आना और बड़े जगत् से था और वह नहीं पहचान पाया कोई भी, क्योंकि जब जीसस ने कहा कि सारा राज्य मेरा है और वो मेरे साथ चलते है, ये साम्राज्य के मालिक हो जाएंगे तो जो तथ्यों को जानने वाले थे चिन्तित हो गए। उन्होंने कहा मालूम होता है कि जीसस कोई क्रान्ति, कोई बगावत करना चाहता है और जो सच में राजा है उस पर हावी होना चाहता है । जब जीसस को पकड़ा गया और उसको कोटे का ताज पहनाया गया और पूछा गया कि क्या तुम राजा हो तो उसने कहा, हां ! लेकिन फिर भी समझ में नहीं आ सका कि वह आदमी क्या कह रहा है ? फिर उससे पूछा गया, क्या तुम सम्राट होने का दावा करते हो? तो उसने कहा, 'हां, क्योंकि मैं सम्राट हूँ।' लेकिन यह बात बिल्कुल असत्य थी क्योंकि जीसस सम्राट् नहीं थे। एक गरीब बादमी के बेटे थे। उस लाख आदमियों की भीड़ में जो सूली देने इकट्ठे हुए थे, दस-पांच ही में जो पहचान पाए कि हाँ वह सम्राट है। बाकी ने कहा 'खत्म करो, इस आदमी को। यह कैसी झूठी बातें बोल रहा है।' और पायलट ने, जो गवर्नर था, जिसकी आज्ञा से सूली दी गई थी; मरते वक्त जीसस के पास खड़े होकर पूछा : सत्य क्या है ? जीसस चुप रह गए। कुछ उत्तर नहीं दिया । सूली हो गई । प्रश्न वहीं खड़ा रह गया। जीसस ने उत्तर इसलिए नहीं दिया कि सत्य दिखाई पड़ता है या नहीं दिखाई पड़ता है पूछा नहीं जा सकता है। तव्य पूछे जा सकते हैं। बताया जा सकता है कि यह तथ्य है। जो कोई पूछे सत्य क्या है तो बताया नहीं जा सकता । वह देखा जा सकता है । तो जीसस चुपचाप खड़े रह गए कि देख लो अगर दिखाई पड़ जाए तो तुम्हें पता चल जाएगा कि सत्य क्या है, यह बादमी सम्राट् है या नहीं। और अगर तथ्य की बात पूछते हो तो फिर ठीक है, आदमी बढई का लड़का है, सूली पर लटका देने योग्य है क्योंकि दिमाग खराब हो गया है और अपने को सम्राट घोषित कर रहा है। इधर मैं निरन्तर इस सम्बन्ध में चिन्तन करता रहा है कि तथ्य को पकड़ने वाली बुद्धि सत्य को पकड़ सकती है या नहीं। और मुझे लगता है कि नहीं पकर सकती। सत्य को पकड़ने के लिए और गहरी आँस चाहिए जो तथ्यों के भीतर उतर जाता है और तब ऐसे सत्य हाप लगते है जिनको तथ्य कोई खबर नहीं दे पाता । इसी दृष्टि से यह सारी बात मने कही है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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