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समापन-प्रवचन- २६
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आत्मा की होश बहुत दूर की बात है । तब बौद्ध भिक्षु ने कहा कि यह किस ग्रन्थ में लिखा हुआ है । मैंने कहा : मुझे पता नहीं, हो सकता है न हो। लेकिन न भी हो तो घटना घटनी चाहिए। क्या फर्क पड़ता है कि घटीं कि न घुटी । यह भी बहुत मूल्य का नहीं है कि कौन सी घटना घटती है कि नहीं घटती । बहुत मूल्य का यह है कि वह घटना क्या कहती है । बुद्ध ने बहुत मौकों पर यह बात लोगों को कही होगी कि जो शरीर के प्रति नहीं जगा हुआ है, वह खात्मा के प्रति कैसे जगेगा ? और बहुत बार उन्होंने लोगों को टोका होगा उनकी मूर्छा में। घटना कैसी घटी होगी यह बहुत गो बात है । महत्वपूर्ण बात यह है कि बुद्ध जागरण के लिए निरन्तर आग्रह करते हैं । और जो शरीर के प्रति सोया हुआ है, वह आत्मा के प्रति कैसे जागेगा, और बहुत बार वे लोगों को मूर्छा में पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि 'देखो ! तुम बिल्कुल सोए हो ।' और सोए हुए आदमी को बताना पड़ता है कि 'यह रही नींद !' और नींद तभी टूट सकती है । घटना बिल्कुल सच है, ऐतिहासिक न हो तब भी । ऐतिहासिक होने से भी क्या होता है ? इतिहास भी क्या है ? जहाँ घटनाएँ पर्दे पर साकार हो जाती हैं, इतिहास बन जाता है। और घटनाएँ अगर पर्दे के पीछे ही रह जाएँ तो इतिहास नहीं बनता है । इस देश में और सारी दुनिया में जो लोग जानते हैं, वे बड़े अद्भुत हैं ।
कहानी है कि वाल्मीकि ने राम की कथा राम के होने के पहले लिखी । यह बड़ी मधुर और बड़ी अद्भुत बात है। राम हुए नहीं तब वाल्मीकि ने कथा लिखो और फिर राम को कथा के हिसाब से होना पड़ा। फिर कोई उपाय न था क्योंकि वाल्मीकि ने लिख दी तो फिर राम को वेसा होना पड़ा । वह सब करना पड़ा जो वाल्मीकि ने लिख दिया था। यह बड़ी अद्भुत बात है, इतनी अद्भुत कि इसे सोचना भी हैरान करने वाला है । पहले राम हो जाएं फिर कथा लिखी जाए, यह समझ में आता है। लेकिन वाल्मीकि कथा लिख दें और फिर • राम को होना पड़े और सब वैसा ही करना पड़े, जो वाल्मीकि ने लिख दिया था, मुश्किल है । वाल्मीकि ने लिख दिया है तो अब वैसा करना पड़ेगा । तो उस बोकूजो ने जो कहा कि कह देना बुद्ध को कि वह फिर यह कह दें, अगर न कहा हो तो कह दें तो वह उसी अधिकार से कह रहा है जिस अधिकार से बाल्मीकि कथा लिख गए है।
इतिहास पीछे लिखा जाता है । सत्य पहले ही लिखा जा सकता है क्योंकि सम का मतलब है जिससे अन्यथा हो ही नहीं सकता । इतिहास का मतलब है,