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________________ महावीर : kare मोर कल्पना भी सत्य हो सकती है अगर हममें बहते भीतर से पकाने की कोशिश की। सबाले वस्तुपरक नहीं है । सवाल बामपरक है। जो महावीर उतने ही महत्वपूर्ण है जितना महावीर को देखने वाला है। और वह वही देख पाएगा जितना देख सकता है। क्या हम महावीर को अपने भीयर लेकर जी सकते है ? जैसे एक मां अपने पेट में एक बच्चे को लेकर जीती है। क्या हम जिसे प्रेम करते है उसे हम अपने भीतर लेंकर जीने लगते हैं ? उस जीने से जो निखर आता है, उसमें हमारा भी हाप होता है । उसमें महावीर भी होते हैं, हम भी होते हैं। यह इतना ही गहरा है जैसे कि अब बाप रास्ते के किनारे लगे हुए फूल को देखकर कहते हैं 'बहुत सुन्दर' तो आप सिर्फ फूल के बावतं ही नहीं कह रहे है, अपने बाबत भी कह रहे हैं। क्योंकि हो सकता है कि पड़ोस से एक आदमी निकले, और कहे : या सुन्दर है इसमें ! इसमें तो कुछ भी सुन्दर नहीं है। साधारण-सा फूल है, घास की फूल।" यह मादमी जो कह रहा है, वह भी उसी फूल के सम्बन्ध में कह रहा है। रात एक भूखा भादमी है । आकाश की तरफ देखता है। चांद उसे रोटी की तरह मालूम पड़ता है। जैसे रोटी तैर रही हो आसमान में।। हेनरिक हेन एक जर्मन कवि था। वह तीन दिन तक भूखा भटक गया जंगल में । पूर्णिमा का चांद निकला तो उसने कहा, "बाश्चर्य अब तक मुझे चांद में सदा स्त्रियों के चेहरे दिखाई पड़े थे और पहली दफा मुझे चांद रोटी दिखाई पड़ी। मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि चांद भी रोटी जैसा दिखाई पड़ सकता है लेकिन भूखे आदमी को दिखाई पड़ सकता है।" तीन दिन के भूखे भावमी को चांद ऐसा लगा जैसे रोटी आकाश में तैर रही हो । आकाश में रोटी तैर रही है। चांद तो है ही, इसमें एक भूखे आदमी की नजर भी है। एक फूल सुन्दर है, इसमें फूल तो है ही, एक सौन्दर्य बोष वाले व्यक्ति की नजर भी सम्मिलित है। कोई फूल इतना सुन्दर नहीं है अकेले जितना बांख उसे सुन्दर बना देती है और प्रेम करने वाला उसे सुन्दर बना देता है और ऐसी चीजें खोल देता है उसमें जो शायद साधारण किनारे से गुजरने वाले को कभी दिखाई न पड़ी हों। तो मने जो भी कहा है, वह महावीर के सम्बन्ध में ही कहा है। लेकिन में उसमें मौजूद है और जो हम दोनों को समझने की कोशिश करेगा वही मेरी बात को समझ पा सकता है । जो सिर्फ मुझे समझता है वह नहीं समझ पाएगा। जो सिर्फ शास्त्र से महावीर को समझता है वह भी नहीं समझ पाएगा। यहां दो
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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