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________________ ७४२ महावीर : मेरी रष्टि में पाएगा; या मानन्द में चला जाएगा या सुख में चला जाएगा। सुख में हम जाते रहे है । और मानन्द में नहीं पहुंच पाए हैं। अगर दुःख में हम सीधे खड़े हो जाएं तो हम आनन्द में पहुंच जाते हैं । ___ आनन्द सुख में नहीं है। आनन्द सुख दुःख का अभाव है। मानन्द में न सुख है, न दुःख है। इसलिए बुद्ध ने आनन्द शब्द का प्रयोग नहीं किया है । बुद्ध ने बहुत समझ कर शब्दों का प्रयोग किया है। इतनी समझ किसी आदमी ने नहीं दिखाई क्योंकि आनन्द में कितना ही समझाओ सुख का भाव छुगा हुमा है। यानी कितना भी मैं समझाऊं कि आनन्द सख नहीं है आप फिर भी कहेंगे कि आनन्द कैसे मिले ? और जब आप कहेंगे तब आपके मन में यही होगा कि सुख कैसे मिले ? शब्द बदल लेंगे लेकिन भाव सुख का ही रहेगा तो आप कहेंगे कि ठीक है, फिर तरकीब बताइए कि आनन्द कैसे पाया जाए। दुःख है तो दुःख से कैसे बचा जाए ? कोई विधि बताइये कि हम आनन्द कैसे पा लें और मानन्द तो पाना जरूरी है। और अगर गहरे में देखेंगे तो आप आनन्द शब्द का प्रयोग ठीक नहीं कर रहे हैं आप कह रहे है कि सुख पाना जरूरी है । सुख कैसे पाया पाए ? दुःख से कैसे बचा जाए ? बहुत कठिन है आदमी को समझाना कि आनन्द सुख नहीं है और आमतौर पर हम दोनों का पर्यायवाची प्रयोग करते हैं कि आदमी सुखी है, बड़े मानन्द में है । बुद्ध ने इसलिए प्रयोग किया 'शांति' । वह बानन्द नहीं कहते हैं । आनन्द शब्द ठीक नहीं है, खतरनाक है । शांति में भाव बिल्कुल दूसरा है। शांति का अर्थ हैम सुन न दुःस, सब शान्त । कोई तरंग नहीं है न दुःख की, न सुख की। म सुख का भाव है न दुःख का भाव है । न कहीं जाना है, कहीं आना है । ठहर गया है सब । रक गए हैं, मौन हैं, चुप है। झोल पर एक भी लहर नहीं है । इसलिए बुद्ध कहते हैं : मैं आनन्द का आश्वासन नहीं देता। क्योंकि मैं तुम्हें मानन्ध का आश्वासन दूंगा और तुम सुख का आश्वासन लोगे। कठिनाई यह है कि बात आनन्द को की जाएगी, समझी सुख की जाएगी क्योंकि हमारी बाकांचा सुख की है।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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