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________________ दुःख, सुख, और आनन्द इन तीन शब्दों को समझना बहुत उपयोगी होगा। दुःख और सुख भिन्न चीजें नहीं है बल्कि उन दोनों के बीच में जो भेद है वह ज्यादा से ज्यादा मात्रा का, परिमाण का, डिग्री का है। और इसलिए दुःल. सुख बन सकता है और सुख दुःस बन सकता है। जिसे हम सुख कहते है वह भी दुःख बन सकता है और जिसे हम दुःख कहते हैं वह भी सुख बन सकता है। इन दोनों के बीच का जो फासला है. भेद है, वह भेद विरोधी का नहीं है, वह भे। मात्रा का है : एक आदमी को हम गरीब कहते हैं। एक बादमी को हम भोर कहते हैं। गरीब और अमीर में भेद किस बात का है ? विरोष है दोनों में ? आमतौर से ऐसा दिखता है कि परीब और अमीर विरोधी व्यवस्थाएं है। ले कन सच्चाई यह है कि गरीबी-अमीरी एक ही चीज की मात्राएं है। एक अनमी के पास एक रुपया है तो गरीब है, एक करोड़ रुपया है तो ममीर है। अगर एक रुपए में गरीब है तो एक करोड़ में अमीर कैसे हो सकता है ? इतना हो हम कह सकते है कि यह एक करोड़ गुना कम गरोष है। और एक करोड़ वाला अमीर है तो एक रूपए वाला गरीब कैसे ? फिर इतना ही हम कह सकते है कि यह एक करोड़ गुना कम अमीर है। इन दोनों में जो भेद है, वह ऐसा नहीं है जैसा दो विरोषियों में होता है। वह भेद ऐसा है जैसे एक ही चीज की मात्रा में होता है। लेकिन गरीबी दुःख हो सकती है और अमीरी सुख हो सकती है । गरीब दुःखी है और अमीर होना चाहता है ! तो दुःख और सुख में को भी भेव है, वह मेव सिर्फ मात्रा का ही है। इसी भांति हमारी सारी सुख की अनु. भूतियां दुःख से जुड़ी हुई है और हमारी सारी.दुःखको अनुभूतियां भी सुबसे पुड़ी हुई है। इन दोनों के बीच जो गेल रहा है वह संसार में है। संसार में
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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