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सूर्यास्त की लालिमा है । कभी स्थाल ही नहीं क्रिया कि सूर्यास्त की लालिमा
का क्या मतलब है । सुबह भी लालिमा होती है। अभी सूरज बढ़ेगा और चढ़ेगा; अभी फैलेगा और विस्तीर्ण होगा, अभी जलेगा औरं तपेगा । अभी दोपहर पाएगा और जवान होगा। सुबह की लालिमा सिर्फ खबर है जन्म की । वह भी वासना है लेकिन विकासमान, फैलने वाली । साँझ को फिर आकाश लाल हो जाएगा । यह सूर्यास्त की लालिमा है लेकिन वह अन्तिम लालिमा है । लेकिन फैलने की नहीं, सिकुड़ने की है। अब सब सिकुड़ता जा रहा है। सूरज सिकुड़ रहा है, किरणें वापस लौट रही हैं, सूरज डूबता चला जा रहा है । लेकिन लोटती किरणें भी लालिमा फेकेंगो, उपती किरणों ने भी फेंकी थीं और अगर किसी को पता न हो तो उगते और डूबते सूरज में भेद करना मुश्किल हो सकता है । अगर पता न रहा हो, एक आदमी दो चार दिन बेहोश रहा हो और एकदम होश में लाया जाए और उससे कहा जाय कि सूरज डूब रहा है कि उठ रहा है तो उसे थोड़ा वक्त लग जाएगा क्योंकि उगता और डूबता सूरज एक-सा लगता है । किरणों का जाल एक में फैलता होता है, एक में सिकुड़ता होता है । एक में लालिमा घटती है, एक में बढ़ती है। लेकिन लालिमा दोनों में होती हैं, किरणें दोनों में होती हैं। थोड़ी देर लग सकती है उसको पहचानने में कि यह लालिमा सिकुड़ने की है या फैलने की है।
तो व्यक्ति का पहला जन्म किरण होता है जहाँ से वासना फैलती है । वासना ही फैलती हुई इच्छाएँ हैं—फैलता हुआ सूर्योदय । जब सब इच्छाएँ सिकुड़ जाती हैं और सूरज का सिर्फ गोल हिस्सा रह जाता है डूबता हुआ आखिरी - इसकी फिर भी कालिमा है ।
में बाते हैं, महावीर
डूबते की है यह आखिरी लालिमा । यह करुणा है। यह डूब जाएगा । और कई बार चूक हो जाती है। हम समझते हैं कि सूरज उग रहा है और जब तक हम समझ पाते हैं तब तक वह डूब जाता है। और हम उससे कुछ लोभ नहीं ले पाते हैं । यह बहुत बार होता है । बुद्ध गांव गांव में आते हैं, जीसस भी जाते हैं, कृष्ण भी आते हैं। कि अभी सूर्योदय हो रहा है। और तुम वासनाग्रस्त हो और तब तक सूरज डूब गया। फिर रोते बैठे रहो। सकता । तब जानने के लिए उपाय नहीं रह जाता। लेकिन उगता, डूबता सूरज एक जैसे मालूम पड़ते हैं। हो सकता है कि बुद्ध जिस गांव में आए हों, लोगों ने सोचा हो कि यह सब भी बासना है ।
लेकिन हो सकता है
और तुम चूक गए हो फिर कुछ भी नहीं हो