SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 604
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्न : जब आत्मा अमर है, ज्ञानस्वरूप है, फिर वह कैसे अज्ञान में गिरती है, कैसे बन्धन में गिरती है, कैसे शरीर लेती है ? जबकि शरीर छोड़ना है, शरीर से मुक्त होना है तो यह कैसे सम्भव हो पाता है ? उत्तर : यह सवाल महत्वपूर्ण है और बहुत ऊपर से देखे जाने पर समझ में नहीं आ सकता । थोड़ा भीतर गहरे झांकने से बात स्पष्ट हो जाती है कि ऐसा क्यों होता है । जैसे इस कमरे में आप हैं और आप इस कमरे के बाहर कभी नहीं गए, बड़े आनन्द में हैं, बड़े सुरक्षित हैं, न कोई भय न कोई अंधकार, न कोई दुःख । लेकिन इस कमरे के बाहर आप कभी नहीं गए । तो इस कमरे में रहने की दो शर्तें हो सकती हैं। एक तो यह कि आपको इस कमरे से बाहर जाने की स्वतन्त्रता ही नहीं है। यानी आप जाना भी चाहें तो नहीं जा सकते। आप परतंत्र हैं इस कमरे में रहने को। एक तो शर्त यह हो सकती है । दूसरी शर्त यह हो सकती है कि अगर आप परतंत्र हैं बाहर जाने के लिए तो आपका सुख, आपकी शांति, आपकी सुरक्षा सभी थोड़े दिनों में आपको कष्टदायी हो जाएगी क्योंकि परतंत्रता से बड़ा कष्ट और कोई भी नहीं है । अगर आपको सुख में रहने के लिए बाध्य किया जाए तो सुख भी दुःख हो जाएगा । एक आदमी को हम कहें कि हम तुम्हें सारे सुख देते हैं सिर्फ स्वतंत्रता नहीं, यानी यह भी स्वतंत्रता नहीं कि अगर तुम चाहो तो उन सुखों को भोगने से इन्कार कर सको, तुम्हें भोगना ही पड़ेगा तो वह सुख भी दुःख में बदल जाएगा । परतंत्रता बड़ा दुःख है । वह सारे सुखों को मिट्टी करी देती है । अगर यह शर्त हो इस कमरे के भीतर रहने की कि बाहर नहीं जा सकते, सुख नहीं छोड़ सकते तो यह सब सुख दुःख हो जाएंगे मोर बाहर निकलवे की प्यास ४५.
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy