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प्रश्नोत्तरप्रवचन-२१
लगा है वो आप प्रशंसा भी करते हो और कहते हो कि बहुत अच्छा है, भगवान् की छपा है लेकिन इसमें भो भीतर ईष्या घाव कर रही होगी लेकिन जब कोई आदमो स्वेच्छा से दुःख में जाता है तब हम उसको बड़ा आदर देते है क्योंकि वह वही काम कर रहा है जो हम चाहते थे कि करे । इसलिए त्यागियों, तपस्वियों, तथाकषित छोड़ने वाले लोगों को जो इतना सम्मान मिला है उसका यही कारण है। आप किसी सुखी आदमी को कभी सम्मान नहीं दे सकते। टुःखी हो, और दुःख मोढा गया हो, तब हम उसके पैरों में सिर रख देंगे कि आदमी अद्भुत है। __ यह भो मेरा मानना है कि मनुष्य जाति भीतर से रुग्ण है, इसकी वजह से त्यागियों को सम्मान मिलता है। अगर मनुष्य जाति स्वस्थ होगी तो सुखी लोगों को सम्मान मिलेगा। जो स्वेच्छा से ज्यादा से ज्यादा सुखी हो गए हैं, उनका सम्मान होगा। और यह भी ध्यान रहे कि हम जिसको सम्मान देते हैं, धीरेधीरे हम भी वैसे होते चले जाते हैं। दुःख को सम्मान दिया जाएगा तो हम दुःखी होते चले जाएंगे; सुख को सम्मान दिया जाएगा तो हम सुख की यात्रा पर कदम बढ़ाएंगे। लेकिन अब तक सुखी आदमियों को सम्मान नहीं दिया गया। अब तक सिर्फ दुःखी आदमियों को सम्मान दिया गया है। यह मनुष्य जाति के भीतर दूसरे को दुःख देने की प्रबल आकांक्षा का हिस्सा है।
प्रश्न: क्या त्यागी आपस में एक दूसरे को सम्मान नहीं बैंगे?
उत्तर : सम्मान देंगे। अगर बड़ा त्यागी मिल जाए, अपने को ज्यादा दुःख देने वाला मिल जाए तो सम्मान देंगे। कारण वही होगा। छोटा त्यागी बड़े त्यागी को सम्मान देगा। क्योंकि छोटा त्यागी पन्द्रह दिन खाता है, बड़ा त्यागी महीने भर भूखा बैठा हुआ है। छोटा त्यागी बड़े त्यागी को सम्मान देगा लेकिन बात वही है। दूसरे का दुःख देख कर हमारे मन में सम्मान पैदा होने की बात ही एक भयंकर भूल है।