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________________ ६०६ महावीर : मेरो दृष्टि में पकड़ नहीं होगी। तब आप जी जान से नहीं पकड़ेंगे क्योंकि आप जानते हैं कि पकड़ो, या न पकड़ो, असुरक्षा अपनी जगह खड़ी है। तब धन भी होगा, आप धनी नहीं हो पाएंगे। क्योंकि धनी होने का कोई कारण नहीं है। तब धन भी होगा और आप दरिद्र बने रहेंगे । क्योंकि आप जानते है कि दरिद्रता अपनी जगह खड़ी है; वह धन से नहीं मिट जाती । तब जितना ही अच्छा स्वास्थ्य होगा तो भी मौत भूल नहीं लाएगी क्योंकि आप जानेंगे कि अच्छे या बुरे स्वास्थ्य का सवाल नहीं है । मोत है। वह खड़ी है। वह बीमार के लिए भी खड़ी है, स्वस्थ के लिए भी खड़ी है। असुरक्षा का बोध, असुरक्षा की भावना आपको करनी नहीं है। हम सुरक्षा की भावना कर-करके असुरक्षा के बोष को मिटाते हैं । लेकिन असुरक्षा सत्य है। अभी मैं भावनगर में था । एक चित्रकार युवक मेरे पास आया। वह कई वर्ष अमेरीका रह कर लौटा है और बड़ी प्रतिभा का युवक है । लेकिन परेशान हो गए हैं मां-बाप । पत्नी परेशान है। वे सब मेरे पास आए । पत्नी, मां, बाप, बूढ़े-और यह एक ही लड़का है उनका । उसी पर सब लगा दिया है और अब बड़ी मुश्किल हो गई है । उन्होंने मुझे आकर कहा कि हम बड़ी मुश्किल में पड़ गए हैं । हमारा लड़का बिल्कुल ही व्यर्थ की असुरक्षाओं से परेशान है, व्यर्थ के भय से पीड़ित है। जो घटना कभी नहीं हो सकती उसके साथ वह मरा जा रहा है। यह लड़का अगर बाहर जाए, किसी को अन्धा देख ले तो एकदम घर लौट आता है, बिस्तर पर लेट जाता है, कंपने लगता है और कहता है कि कहों में अंधा न हो जाऊँ। कोई मर जाए पड़ोस में तो उसकी हमें फिक्र नहीं होती जितनी हमें इसकी फिक्र होती है कि इसको पता न चल जाए क्योंकि इसे पता चला कि यह दो चार दिन के लिए बिल्कुल ठंडा हो जाता है और कहता है कि मैं मर तो नहीं जाऊंगा। हम समझा-समझा कर परेशान 'हो गए । अमेरिका में उसका मनोविश्लेषण भी करवाया है। उससे भी कुछ हित नहीं हुआ। हिन्दुस्तान के भी कुछ डाक्टरों को दिखा चुके हैं, उससे भी कुछ फायदा नहीं हुआ। जिसके पास ले जाते हैं वह कहता है कि ये फिजूल के भय हैं। अभी तुम पूरे जवान हो, कहाँ मर जाओगे, तुम्हारी माखे बिल्कुल ठीक हैं । हम परीक्षाएं करवा देते हैं, आँखें तुम्हारी बिल्कुल ठीक है। वह कहता है : यह सब तो ठीक है लेकिन क्या यह पक्का है कि आँख ठीक हो तो अन्धा नहीं हो सकता आदमी । क्या यह बिल्कुल पक्का है कि आदमी जवान हो तो नहीं मरता । वह कहता है कि हम यह सब समझ जाते हैं लेकिन फिर भी
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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