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महावीर : मेरी दृष्टि में
खोज़ना पड़ता । यह आलस्य की शिक्षा नहीं है, बहुत गहरे में असुरक्षा के
स्वीकार की शिक्षा है ।
ऐसी असुरक्षा में महावीर असंग खड़े हो गए । न कोई संगी है, न कोई साथी है क्योंकि वह भी हमारी सुरक्षा का उपाय है। एक स्त्री अकेली होने में डरती है । जगत् भय देने वाला । एक पति चाहिए जो उसकी सुरक्षा बन जाए । पति भी शायद असुरक्षित है क्योंकि स्त्रियाँ उसको आकर्षित करेंगी, स्त्रियां उसे खीचेंगी और तब बड़ी असुरक्षा पैदा हो सकती है । इसलिए एक स्त्री चाहिए जो उसे दूसरी स्त्रियों के खिंचाव से बचाने के लिए सुरक्षा बन जाए और जो दूसरे खिंचावों से रोक सके, और कोई खतरा, कोई उपद्रव जिन्दगी में न हो । जिन्दगी व्यवस्थित हो जाए । जत्र अहंकार इंतजाम करता है। तब परमात्मा को इंतजाम छोड़ देना पड़ता है । जब अहंकार छोड़ देता है तो परमात्मा के हाथ व्यवस्था चली जाती है ।
महावीर इसमें किसी तरह के सहयोग, संग, साथ, सुरक्षा लेने को तैयार नहीं हैं | लेकिन फिर बिल्कुल अकेले अकेले ही खोजेंगे, भटकेंगे, उसमें कुछ हर्ज नहीं है क्योंकि भटकन्न भी खोज में अनिवार्य हिस्सा है और भटकने में ही वह प्राण, वह चेतना जागती है जो पहुँचाएगी । तो भटकने का कोई भय नहीं है | इसलिए वे सब तरह के सहारे को इन्कार करते हैं । लेकिन ध्यान रहे कि ऐसे व्यक्ति को सब तरह के सहारे स्वयं आकर उपलब्ध होते हैं । जो भागते हैं चीजों के पीछे उन्हीं को वे उपलब्ध नहीं कर पाते और जो ठहर जाते हैं या विपरीत चल पड़ते हैं, उसके पीछे चीजें चलने लगती हैं ।
जीवन की गहराइयों में कहीं कोई बहुत शाश्वत नियमों की व्यवस्था भी है । उसमें एक नियम यह भी है कि जिसके पीछे आप भागेंगे, वह आपसे भागता चला जाएगा और जिसका मोह आप छोड़ेंगे और अपनी राह चल पड़ेंगे आप अचानक पाएँगे कि वह आपके पीछे चला आया । धन को जो छोड़ते हैं उनके पारा धन चला आता है। मान को जो छोड़ते हैं उनके पास मान की वर्षा होने लगती है । सुरक्षा जो छोड़ते हैं, उन्हें सुरक्षा उपलब्ध हो जाती है । सब जो छोड़ देते हैं, शायद उन्हें सब उपलब्ध हो जाता है। एक घर वे छोड़ते हैं, शायद सवं घर उनके हो जाते हैं । जो एक प्रेमी की फिक्र छोड़ देते हैं, शायद सबका प्रेम उनका हो जाता है । और महावीर इसे बहुत देख रहे हैं । इसलिए वह कहीं वोच में कोई पड़ाव नहीं डालना चाहते और इन्द्र के निमन्त्रण को अस्वीकार करने में उनकी यही भावना प्रकट हुई है ।