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प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १६
भयभीत होता है कि कोई भी नहीं है, मैं बिल्कुल अकेला हूँ । हालांकि सच्चाई यह है कि जब सब है तब भी हम अकेले हैं । तब भो कौन साथ है किसका ? आस-पास हो सकते हैं, निकट हो सकते हैं, साथ कैसे हो सकते है !
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दोनों उस भ्रम को
लेकिन साथ कौन
हमारी यात्राएँ अकेली हैं लेकिन हम एक साथ का भ्रम पैदा कर लेते हैं, पति-पत्नी, मित्र-मित्र, गरु-शिष्य साथ का एक भ्रम पैदा कर लेते है। आदमी इसी भ्रम में है कि कोई मेरे साथ है, मैं अकेला नहीं है । पोस कर बड़े सुप में हैं कि कोई साथ है, कोई डर नहीं । किसके है? तो बस मैं मरूंगा, मैं जिऊँगा तो बस में जिऊंगा और आज भी अपने मन की गहराइयों में वहां मैं अकेला हूँ | वहां की साथ है मेरे ? तो जब तक मैं साथ माँगता रहूँगा तब तक मैं अपने मन की गहराइयों में भी नहीं उतर सरतः। क्योंकि साथ हो सकता है परिधि पर केन्द्र पर साथ नहीं हो सकता | नहीं तो मैं कभी अकेला ही जाऊँगा ।
उस परिधि पर, जहाँ हमारे शरीर होते हैं, बा वहाँ उन तक हम साथ हो सकते है । और जो व्यक्ति साथ के लिए आतुर है, वह परिवि पर ही जिएगा. यह कभी केन्द्र पर नहीं सरक सकता। क्योंकि जैसे-जैसे भोतर गया, वैसे-वैपायना और गय। अभी हम इतने लोग यहीं के हैं । हम सब आँख बंद कर के शांत हो जाएँ और भातर बाएँ तो यहां एक-एक आदमी ही रह जाता है । सब अकेले रह जाती हैं यहाँ । फिर कोई दूसरा साथ नहीं रह जाता | दो व्यक्ति एक साथ ध्यान में थोड़े ही जा सकते हैं । एक साथ बैठ सकते हैं जाने के लिये जाएँगे तो अकेले अकेले । और जैसे भीतर सरके कि वहाँ कोई भी नहीं है, फिर हम अकेले रह गए । जो व्यक्ति साथ के लिए बहुत आतुर है, वह आदमी परिधि के भीतर नहीं जा सकता। साथ को पूरी तरह कोई इन्कार कर दे, अस्वीकार कर दे तो ही वह अपने भीतर जा सकता है | क्योंकि तत्र परिधि पर होने का कोई रस नहीं रह जाता। यह थोड़ी समझने की बात है |
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हम अपनी परिधि पर जीते ही हैं इसलिए कि वहीं दूसरों के होने की सुविधा है । हम अपने केन्द्र पर इसीलिए नहीं होते कि वहाँ हमारे अकेले होने का उपाय है, वहाँ कोई दूसरा साथ नहीं हो सकता । समाज को छोड़ने का जो मतलब है, वह यह नहीं है कि एक आदमी जंगल में भाग जाए क्योंकि हो सकता है कि जंगल में वह वृक्षों के साथ दोस्ती कर ले, पक्षियों के साथ दोस्ती कर ले, जानवरों के साथ दोस्ती कर ले, पहाड़ों के साथ दोस्ती कर ले | यह सवाल नहीं