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________________ प्रश्न : भगवान् महावीर ने द्वन्द्व को स्पष्ट कहा कि मुझे स्वयं कर्मों से युद्ध करना है। तो भी वह एक देवता को उनकी देख-रेख के लिए नियुक्त कर गए। इस घटना में क्या कोई औचित्य है ? उत्तर : इसमें दो बातें समझने योग्य हैं। एक तो कर्मों से युद्ध; दूसरा अज्ञान से युद्ध । महावीर इस बात की तैयारी में नहीं थे कि कोई भी उनके संघर्ष में सहयोगी बने । चाहे स्वयं देवता हो सहयोग के लिए क्यों न कहें, महावीर सहयोग के लिए राजी नहीं। उनकी दृष्टि यह है कि खोज में कोई संगीसाथी नहीं हो सकता। अगर खोज में कोई संगी-साथो के लिए रुकेगा तो वह खोज से वंचित रह जाएगा। नितान्त अकेले को खोज है। और जिसे नितान्त अकेले होने का साहस है, वही इस खोज पर जा सकता है । मन तो हमारा चाहता है कि कोई साथ हो, कोई गुरु, कोई मित्र, कोई जानवर, कोई मार्गदर्शक, कोई सहयोगी साय हो। अकेले होने के लिए हमारा मन नहीं करता है। लेकिन जब तक कोई अकेला नहीं हो सकता तब तक आत्मिक खोज की दशा में इंच भर भी आगे नहीं बढ़ सकता। अकेले होने की शक्ति सबसे कीमती बात है। हम तो दूसरे को साथ लेना चाहेंगे । महावीर को कोई निमंत्रण देता है आकर कि मुझे साथ ले लो, मैं सहयोगी बन जाऊँगा तो वह सधन्यवाद निमंत्रण वापस लौटा देते हैं। देव इन्द्र कहता है आकर कि मैं सहयोगी बनें तो वह कहते हैं : क्षमा करिए ! यह खोज ऐसी नहीं है कि इसमें कोई साथी हो सके । यह खोज नितान्त अकेले की है। क्यों ? यह अकेले का इतना आग्रह क्यों ? अकेले के आग्रह में बड़ो गहरी बातें हैं ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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