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महावीर : मेरी दृष्टि में
संवेदनहीन था कि मांस खाता रहा। आज मैं सोच भी नहीं पाता कि मैं इतने वर्षों तक कैसे शराब पीता रहा ? मैंने कहा अब क्या दिक्कत है शराब पीने में ? उसने मुझे कहा कि दिक्कत बहुत साफ हो गई है। पहले मैं अशांत था शराब पीता था, अब मैं शान्त हूँ शराब नहीं पीता हूँ। फिर मैंने कहा कि यह तुम्हारी मर्जी है । अब जो तुम समझो करना ।
महावीर का ध्यान ऐसा है कि जो उस ध्यान से गुजरेगा वह मांसाहार नहीं कर सकता है । महावीर कहते नहीं किसी को कि मांसाहार मत करो । वह ध्यान ऐसा है कि आप उससे गुजरेंगे तो मांसाहार नहीं कर सकते । इतने संवेदनशील हो जाएंगे आप कि ये बात मूर्खतापूर्ण मालूम पड़ेगी, जड़तापूर्ण मालूम पड़ेगी कि भोजन के लिए किसी का प्राण लिया जाए। महावीर कहते हैं कि जो ध्यान से गुजरेगा वह शराब नहीं पी सकता है क्योंकि वह ध्यान इतने जागरण में, इतने आन्द में ले जाता है कि शराब पीना उस सबको नष्ट करना होगा । लेकिन हमारी हालत उल्टी है । हम पकड़े हुए हैं कि मांस मत खाओ, शराब मत पियो, यह मत करो, वह मत करो, बस फिर जो महावीर को है, आपको हो जाएगा । मगर कभी नहीं होने वाला है यह । क्योंकि आप गलत दिशा की ओर चल पड़े हैं। आप भूसा बो रहे हैं, गेहूँ का आपको पता ही नहीं है ।
प्रश्न : महावीर समानता के समर्थक थे । फिर भी उनके संघ में साध्वीसंघ उपेक्षित क्यों रहा ?
उत्तर : यह बहुत विचारणीय बात है । महावीर के मन में स्त्री-पुरुष के बीच असमानता का कोई भाव नहीं है । समानता की पकड़ इतनी गहरी है कि मनुष्य और पशु में भी, मनुष्य और पौधे में भी वह असमानता का भाव नहीं रखते । लेकिन फिर भी स्त्री और पुरुष के बीच साधुसंघ में उन्होंने कुछ मेव किया है और उसके कुछ कारण हैं । और वह कारण अब तक नहीं समझे जा सके हैं । न समझे जाने का रहस्य आपको ख्याल में आ सकता है । महावीर स्त्री के विरोध में नहीं हैं, स्त्रेणता के विरोधी हैं और इसको नहीं समझा जा सका। महावीर पुरुष के पक्ष में नहीं हैं लेकिन पुरुष होने का एक गुण है, उसके पक्ष में हैं । इन बातों को हम समझेंगे तो ख्याल में आ जाएगा । कई पुरुष हैं जो स्त्रेण हैं, कई स्त्रियाँ हैं जो पुरुष हैं । स्त्रेणता का अर्थ है निष्क्रयता । पुरुषत्व का अर्थ है सक्रियता तो भी आक्रमण नहीं करती।
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पुरुष आक्रामक है । स्त्री अगर प्रेम भी करे वह जानकर किसी को पकड़ नहीं लेती कि मुझे