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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में कुछ कम हो, दूसरा वृत्त कुछ ज्यादा हो ? यह नहीं हो सकता क्योकि वृत्त का अर्थ ही यह है कि या तो वह वृत्त होगा, या नहीं होगा । कम ज्यादा नहीं हो सकता । जो वृत्त कम है, वह वृत्त ही नहीं है । जैसे प्रेम है । कोई आदमी कहे कि मुझे कम प्रेम है या ज्यादा प्रेम है तो शायद उस आदमी को प्रेम का पता हो नहीं है । प्रेम या तो होता है या नहीं होता है । उसके कोई टुकड़े नहीं होते । और ऐसा भी नहीं कि प्रेम विकसित होता हो क्योंकि विकसित तभी हो सकता है जब थोड़ा-थोड़ा हो सकता हो । ऐसा नहीं होता । अक्सर हमारी पसंद विकसित होती है इसलिए हम सोचते हैं कि प्रेम विकसित हो रहा है । पसंद और प्रेम में बहुत फर्क है। पसंद कम हो सकती है, ज्यादा हो सकती है लेकिन प्रेम न कम होता है, न ज्यादा होता है। या तो होता है या नहीं होता । ऐसा कोई नहीं कह सकता कि ऐसा वक्त आएगा जब लोग ज्यादा प्रेम करेंगे । ऐसा नहीं हो सकता । ५२० जीवन के जो गहरे अनुभव हैं, वे होते हैं या नहीं होते । महावीर को जो जीवन की एकता का अनुभव हुआ वही जीसस को हो सकता है, बुद्ध को हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि उसमें किसी को ज्यादा हो और किसी को कम हो । होगा तो होगा, नहीं होगा तो नहीं होगा । दुनिया में कुछ चीजें हैं आन्तरिक जो कभी विकसित नहीं होती । जब वे उपलब्ध होती हैं, पूर्ण ही उपलब्ध होती हैं या उपलब्ध होती ही नहीं हैं । जैसे की पानी भाप बन रहा है । निन्यानबे डिग्री पर गर्मी हो गई, अभी भाप नहीं बना है । अट्ठानवे डिग्री पर था, भाप नहीं बना, नब्बे डिग्री पर था, भाप नहीं बना, एक सौ डिग्री पर आया कि भाप बन गया। गर्मी कम ज्यादा हो सकती है । अस्सी डिग्री, नब्बे डिग्री, पचानवे डिग्री, निन्यानवे डिग्री | दस बर्तन रखे हैं डिग्री का पानी है । उनमें पानी अभी भाप नहीं हो सकती है । कम होगी तो भाप नहीं बनेगी। बनेगी । या तो भाप बनती है, या नहीं बनती है। नहीं होती । भाप बनने की स्थिति आने तक पानी की डिग्रियाँ हो बन रहा है सबमें अलग-अलग । गर्मी कम-ज्यादा जब पूरी होगी इसके बीच में तभी भाप कोई डिग्री सकती हैं । ज्ञान की डिग्रियां होती हैं ज्ञान की कोई डिग्री नहीं होती हालांकि हम सब ज्ञान की डिग्रिय देते हैं । एक आदमी कम अज्ञानी, एक आदमी ज्यादा अज्ञानी, यह सार्थक है । लेकिन एक आदमी कम ज्ञानी, एक आदमी ज्यादा ज्ञानी - यह बिल्कुल ही असंगत, निरर्थक बात है । कम-ज्यादा ज्ञान होता ही महीं। हाँ, अज्ञान कम-ज्यादा हो सकता है। दो अज्ञानियों में भी ज्ञान
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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