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________________ ५१० महावीर : मेरी दृष्टि में कहीं कोई बात छिपी रहती है । नसरूद्दीन जा रहा है एक रास्ते से । जोर की वर्षा हो रही है । एक मकान के पास बैठ गया है। गांव का मोलवी भाग रहा है वर्षा से । नसरूद्दीन चिल्लाता है : अरे मौलवी, भाग रहे हो। मैं सारे गांव को बता दूँगा। मौलवी ने कहा कि मैंने क्या अपराध किया है ? उसने कहा: पाप तुम कर रहे हो । भगवान् पानी गिरा रहा है और तुम भाग रहे हो । यह भगवान का अपमान है। तो मोलवी धीरे-धीरे चला लेकिन सर्दी से बुखार हो गया। तीसरे दिन मौलवी अपने घर के दरवाजे पर परेशान बैठा था जबकि पानी गिरने लगा । नसरूद्दीन भागा जा रहा था। मौलवी ने कहा : ठहर नसरूद्दीन । मुझे तो तूने धीरे चलने को कहा था, अब तू क्यों भाग रहा है। उसने कहा : भगवान् के पानी पर कहीं मेरा पैर न पड़ जाए इसलिए मैं भाग रहा हूँ और वह भाग गया। दूसरे दिन यह मौलवी मिला तो कहा कि तू बड़ा बेईमान है मुझे उपदेश दे रहा था मगर खुद क्या कर रहा है । नसरूद्दीन ने कहा : सब समझदार लोग बेईमान पाए जाते हैं । ईमानदारी करो तो नासमझ हो जाते हैं। फिर व्याख्या हमेशा अपने अनुकल करनी पड़ती है। शास्त्रों का क्या भरोसा ? अपने पर भरोसा रखना पड़ता है । तुम जब पानी में थे तो हमने वह व्याख्या की । जब हम पानी में हैं तो हमने यह व्याख्या की। सभी बुद्धिमान् यही करते हैं। ऊपर से मन्द बुद्धि मालूम होता है यह आदमी जो लोग परम प्रज्ञा को उपलब्ध होते हैं उनमें से एक है यह आदमी। मगर उसे पकड़ना मुश्किल है । और कई बार उसकी बातें बड़ी बेहूदी मालूम होती हैं । घर लौट रहा है । एक मित्र ने कुछ मांस भेट दिया है और साथ में एक किताब दी है जिसमें मांस बनाने की तरकीब लिखी है । किताब बगल में दबाकर, मांस हाथ में लेकर बड़ी खुशी से भागा चला आ रहा है। चील ने झपटा मारा । चील मांस ले गई । नसरूद्दीन ने कहा : अरे मूर्ख जा क्योंकि बनाने की तरकीब तो किताब में लिखी है।" घर पहुंचा। घरं जाकर अपनी पत्नी से कहा : सुनती हो । आज एक चील बड़ी बेवकूफ निकली। क्या हुआ ? मैं मांस लेकर आ रहा था। वह मांस ले गई लेकिन मांस बनाने की तरकीब तो किताब में लिखी है। उसकी औरत ने कहा कि तुम बहुत बुद्ध हो. चील इतनी बुद्ध नहीं है । उसने कहा कि सभी बुद्धिमानों को मैंने किताब पर भरोसा करते पाया है । इसीलिए मैंने भी किताब पर भरोसा किया। यह आदमी एक बार तो दिखेगा कैसा पागल है? जड़ बुद्धि है । लेकिन कहीं कोई गहरे में उसकी भी अपनी समझ है और
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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