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प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१६
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सूरज भी बूढ़ा होने के करीब पहुंच रहा है। उसकी उम्र ज्यादा नहीं है । वह चार-पांच हजार वर्ष लेगा ठंडा होने में । हमारी पृथ्वी भी बूढ़ी होती चली जा रही है। एक छोटी सी इल्लो है, वह वर्षा में ही पैदा होती है, वर्षा में ही मर जाती है । वह वृत्त पर चढ़ रही है । वृक्ष उसको सनातन मालूम पड़ता है । उसके बाप भी इसी पर चढ़े थे। यह वृक्ष कभी मिटता हुआ नहीं दिखता। इल्ली की हजारों पीढ़ियां गुजर जाती है और यह वृक्ष है कि ऐसा ही खड़ा रह जाता है। इल्लियां सोचती होंगी कि वृत्त न कभी पैदा होते हैं न कभी मरते हैं। इल्लियां पैदा होती हैं और मर जाती है। वृक्ष की उम्र है दो सौ वर्ष और इल्ली एक मौसम भर जीती है। उसकी दो सौ पीढ़ियां एक वृक्ष पर गुजर जाती हैं। हमारी दो सौ पोढ़ियों में कितना लम्बा फासला है। महावीर से हमारा कितना फासला है ? पच्चीस सौ वर्ष ही न ? अगर हम पचास वर्ष को भी एक पीढ़ी मान लें तो कितना फासला है ? कितनी पीढ़ियां गुजरी हैं ? कोई बहुत ज्यादा नहीं।
तो न कोई प्रारम्भ, न कोई अन्त है। और जिसका प्रारम्भ है और अन्त है, वह केवल एक रूप है, एक आकार है । आकार बनेंगे और बिगड़ेंगे, आकृति उठेगी और गिरेगी । सपने पैदा होंगे और खोएंगे। लेकिन जो सत्य है वह सदा है । उसे हम कभी ऐसा भी नहीं कह सकते कि वह था। उसके लिए ऐसा भी नहीं कह सकते कि वह होगा। उसके लिए तो एक ही बात कह सकते हैं कि वह है और अगर बहत गहरे में कोई जाता है तो वह पाता है कि यह कहना भी गलत है कि सत्य है । क्योंकि जो है वही सत्य है । सत्य के साथ 'है' को भी जोड़ना बेमानी है क्योंकि 'है' उसके साथ जोड़ा जा सकता है जो नहीं है, हो सकता हो । कह सकते हैं कि यह मकान है क्योंकि मकान 'नहीं' है यह भी हो सकता है । लेकिन 'सत्य है' इसके कहने में कठिनाई है थोड़ी। क्योंकि सत्य 'नहीं है' कभी नहीं हो सकता। इसलिए सत्य और 'है' पर्यायवाची है । इनका . दोहरा उपयोग करना एक साथ पुनरुक्ति है। 'सत्य है', इसका मतलब है, जो है वह है।
इस दृष्टि का थोड़ा सा ख्याल आ जाए तो सब बदल जाता है। तब पूजा और प्रार्थना नहीं उठती। तब मस्जिद और मन्दिर नहीं खड़े होते, लेकिन सब बदल जाता है। आदमी मन्दिर बन जाता है। आदमी का उठना, चलना, बैठना, सब पूजा और प्रार्थना हो जाती है। क्योंकि अब जो विस्तार का बोध आता है तो अपनी क्षुद्रता खो जाने का अर्थ लगने लगता है। फिर उसका कोई