SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 421
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रश्नोत्तर-प्रवचन-१५ कर सकते हैं। अगर पौधे को इतनी चेतना दे दो जाए कि उसकी कोई गरदन काटे तो वह उतना ही दुःखी हो जितना आदमी होता है तो पौधा बड़ी मुश्किल में पड़ जाएगा। चकि गरदन कोई रोज काटेगा उसकी, इसलिए उसे इतनी मूर्छा चाहिए क्लोरोफार्म वाली कि कोई गरदन भी काटे तो भी पता न चले। पशु पौधे के आगे का रूप है जहाँ पशु ने गति ले ली है। अब उसकी गरदन काटो तो वह उस हालत में नहीं है जिसमें कि पौधा है । उसको पीड़ा बढ़ गई है, संवेदना बढ़ गई है, सुख बढ़ गया है । और गति ने उसको विकसित किया है । लेकिन वह भी एक तरह की निद्रा में चलता रहा है। क्लोरोफार्म की हालत नहीं है लेकिन एक निद्रा की हालत है। उसे अपना कोई पता ही नहीं है । जैसे एक कुत्ता है । उसको आपने झिड़का तो वह भाग जाता है। आपका झिड़कना ही महत्त्वपूर्ण है, उसका भागना सिर्फ प्रत्युत्तर है। आपने रोटी डाली तो खा लेता है, आपने प्रेम किया तो पूंछ हिलाता है। वह कोई कर्म नहीं करता, वह प्रतिकर्म करता है । जो होता रहता है, उसमें वह भागीदार है । भूख लगती है, प्यास लगती है तो घूमने लगता है। भूख न लगे तो वह कुछ खाता नहीं । अगर वह बीमार है तो उस दिन वह कुछ नहीं खाएगा। वह घास खाकर उल्टो भी कर देगा। कुत्ते को अगर खाने की स्थिति नहीं है तो वह कुछ नहीं खाएगा। आदमी खाने की स्थिति में नहीं है तो भी खा सकता है। कुत्ते को अगर खाने की स्थिति है तो उपवास नहीं कर सकता। करना पड़े तो वह बात दूसरी है। आदमी पूरा भूखा है तो भी उपवास कर सकता है। यानी इसका मतलब यह हुआ कि प्रादमी कर्म कर सकता है, कुत्ता सिर्फ प्रतिक्रिया करता है । लेकिन सभी आदमी कर्म भी नहीं करते। इसलिए बहुत कम आदमी आदमी की हैसियत में हैं; अधिकतर आदमी प्रतिकर्म ही करते हैं । यानी किसी ने आपको प्रेम किया तो आप प्रेम करते हैं तो यह प्रतिकर्म हआ और किसी ने गाली दो तो फिर आप प्रेम करें तो कम हआ।' यह वैसा ही हुआ जैसे कुत्ता पछ हिलाता है उसको रोटो डालो तो। कोई बुनियादी फर्क नहीं है दोनों में। तो मैं कह रहा हूँ कि कुछ पौधे सरकने लगे हैं। वह जानवर की दिशा में प्रवेश कर रहे हैं ! जानवर भी थोड़ा-बहुत आदमी की दिशा में सरक रहे हैं। कुछ आदमी भी चेतना लोंकों की तरफ सरक रहे हैं। फर्क है स्वतन्त्रता का। पत्पर सबसे ज्यादा परतंत्र है, पौधा उससे कम, पशु उससे कम, तथाकथित मनुष्य उससे कम । महावीर, बुद्ध जैसे लोग बिल्कुल कम । अगर हम ठीक से
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy