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प्रश्न : मापने कहा कि आप महावीर के सम्बन्ध में अन्तर्दृष्टि से कुछ बतलाएंगे और यदि यह जानना हो कि जो आपने कहा है वह ठीक है या गलत है, दूसरा कोई प्रादमी भी उसी प्रकार का प्रयोग करके बस ले। मुझे लगता है कि दूसरा भी साधन है जिससे आपके कथन को प्रामाणिकता मांची जा सकती है । वह साधन यह है कि हममें से किसी के जीवन को कोई घटना जो अब तक साक्षात् नानना सम्भव नहीं है, आप यदि पतला दें तो यह प्रमाणित हो सकता है कि जिस प्रकार आप हमारे जीवन की कोई ऐसी घटना जान गए जो आपने कभी देखी-सुनी नहीं उसी प्रकार आप महावीर के पिछले जीवन को अन्तर्दष्टि से जान सके होंगे। क्या आप इस प्रकार करमा पसंद करेंगे?
उत्तर : दो तीन बातें समझनी चाहिए। पहली बात यह है कि महावीर के बाह्य जीवन की घटना जानना एक बात है और महावीर के अन्तर्जीवन में क्या घटा, यह जानना दूसरी बात है। महावीर के बाह्य जीवन से मुझे प्रयोजन ही नहीं है; न जानने की उत्सुकता है। लेकिन अन्तर्जीवन में क्या घटा उससे प्रयोजन है, उत्सुकता भी है, उस तरह दृष्टि भी है। तुम्हारे अन्दर भी देखा जा सकता है। तुम्हारे बहिर्जीवन से मुझे कोई प्रयोजन नहीं है । सच बात तो यह है कि जिसे हम बाहर का जीवन कहते हैं वह एक स्वप्न से ज्यादा मूल्य नहीं रखता । हमें वह बहुत महत्त्वपूर्ण मालूम पड़ता है क्योंकि हम उस स्वप्न में ही जीते हैं जैसे रात कोई स्वप्न देखे, तो स्वप्न में उसे पता ही नहीं चलता कि यह सपना है। लगता है वह बिल्कुल सत्य है। जब तक जाग न जाए तब तक.सपना सत्य ही मालूम पड़ता है। जागते ही सपना एकदम व्यर्थ हो. जाता है।