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________________ ४५५ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १४ वह फिर भी पैसा इकट्ठा करता है । कल वह कमा कर इकट्ठा करता था, आज वह कमाने वालों को फँसा कर इकट्टा करता है । अब उसका जाल जरा गहरा सूक्ष्म, चालाकी का हो जाता है । कल भी वह मकान बनाता था, अव भो बनाता है । कल बनाए हुए मकानों को मकान कहता था, अब उनको आश्रम, मन्दिर ऐसे नाम देता है । कल जो कहता था, वही अब करता है । कल भी अदालत में लड़ता था, अब भी अदालत में लड़ता है। लड़ने का आधार कल व्यक्तिगत सम्पत्ति थी, आज आश्रम की सम्पत्ति है । भागा हुआ व्यक्ति नीचो सोढ़ियों पर उतर जाता है। लेकिन ऊपर की सीढ़ी पर जो जाएगा उसकी भी सीढ़ी टूटती है । यह बारोक है पहचान और यह हमें समझ में तब आएगी जब हम अपनी जिन्दगी में इसकी पहचान करें कि हम कहीं से भागे हैं, या कहीं गए हैं । चलो यहाँ आप सब मित्र आए हैं । कोई आ भी सकता है, कोई भागा हुआ भी आ सकता है । एक आदमी बेचैन हो गया है, परेशान हो गया है, पत्नी सिर खाए जाती है, दफ्तर में मुश्किल है, काम ठीक नहीं चलता, पन्द्रह दिन के लिए सब भूल जाओ। ऐसा भी आदमी आ सकता है। वह भागा हुआ दिखाई पड़ेगा और वह बच नहीं सकता क्योंकि जिससे वह भागा है वह उसका पोछा करेगा । वह सब भय, वे सब चिन्ताएँ इस पहाड़ पर भी उसे घेरे रहेंगी । हाँ, थोड़ी देर के लिए बातचीत में भूल जाएगा लेकिन लोट कर फिर सव पकड़ लेगा । और पन्द्रह दिन पहले जिस उलझन से वह भाग आया था, वह उलझन पन्द्रह दिन में कम नहीं होने वाली है, पन्द्रह दिन में और बढ़ गई होगी । पन्द्रह दिन बाद वह फिर उसी उलझन में खड़ा हो जायगा, दुगुनी परेशानी लेकर वहीं पहुँच जाएगा। लेकिन कोई आदमी आया हुआ भी हो सकता है, कहीं से भागा हुआ नहीं है । वह कहीं कोई ऐसी बात न थी जिससे वह भाग रहा है बल्कि कहीं कुछ पाने जैसा लगा है, इसलिए चला आया है । यह आदमी आ सकेगा सच में और आकर पीछे को सब भूल जाएगा क्योंकि कहीं से आमा है, कहीं से भागा नहीं है । और यहाँ से लौटकर दूसरा आदमी होकर भी जा सकता है । और आदमी बदल जाए तो सारी परिस्थितियां बदल जाती हैं । मैं महावीर को पलायनवादी नहीं कहता हूँ |
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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