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________________ प्रवचन- १ २१ सुरक्षित न रह जाए ? क्या यह संभव है कि कृष्ण जैसा आदमी पैदा हो ओर सिर्फ आदमी की लिखी किताबों में उसकी सुरक्षा हो और अगर किताबें खो जाएं तो कृष्ण खो जाएगा। अगर ऐसा है तो न कृष्ण का कोई मूल्य हैं, न महावीर का कोई मूल्य है । आदमी के रिकार्ड, क्लर्कों के रिकार्ड, गणधरों के रिकार्ड ही अगर सब कुछ हैं, तो ठीक है किताबें खो जाएंगी और ये आदमी खो जाएंगे । मगर इतना सस्ता नहीं है यह मामला कि इतनी बड़ी घटनाएं घटें जिन्दगी में और वह खरबों वषों में और वहां, खरबों लोगों के बीच कभी कोई आदमी परम सत्य को उपलब्ध होता हो, उसके परम सत्य के उपलब्ध होने की घटना सिर्फ कमजोर आदमियों को कमजोर भाषा में सुरक्षित रहे और अस्तित्व में इसकी सुरक्षा का कोई उपाय न हो, ऐसा नहीं है । ऐसा हो भी नहीं सकता । इसलिए एक और उपाय है । मेरा कहना है कि जगत् में जो भी महत्वपूर्ण घटता है, महत्त्वपूर्ण तो बहुत दूर की बात है, साधारण, और अमहत्त्वपूर्ण घटता है, वह भी किसी तरह पर सुरक्षित होता है, महत्त्वपूर्ण तो सुरक्षित होता ही है, वह तो कभी नष्ट नहीं होता । इसलिए जो भी महत्त्वपूर्ण घटा है जगत् में कभी भी वह मनुष्य पर नहीं छोड़ दिया गया है कि आप उसे सुरक्षित करें। वह तो ऐसे ही होगा कि अन्धों के एक समाज में एक आदमी को आंख मिल जाए और उसे प्रकाश दिखाई पड़े, और अन्यों के ऊपर निर्भर हो कि तुम उसके अनुभव को सुरक्षित रखो, अन्धों को छूट हो इस बात की कि तुम्हारे बीच जो आंख वाला एक आदमी पैदा हुआ और उसे जो अनुभव हुआ, तुम उसे सुरक्षित रखना; तुम वेद • बनाना, तुम आगम रचना, तुम गीता रचना, तुम बाइबिल बनाना, इन्हें सुरक्षित रखना । और फिर अनुभव के अनुभव की टीकाएं होती चली जाएं। और हजार दो हजार साल बाद आंख वाले आदमी की देखी गई बात अन्धों द्वारा सुरक्षित की गई हो, अन्धों द्वारा व्यास्थायें की गई हों हम आंख वाले आदमी को बात को खोजने निकलें तो दूसरा नहीं होगा । और फिर उनके द्वारा हमसे ज्यादा मूढ़ कोई तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि अस्तित्व में कुछ भी खोता नहीं । मच तो यह है कि अभी भी मैं जो बोल रहा हूँ वह कभी खोएगा नहीं । आप भी जो बोल रहे हैं, वह भी नहीं खोएगा । जो शब्द एक बार पैदा हो गया है, वह नहीं खोएंगा कभी । आज हम जानते हैं, लंदन में कोई बोल रहा है, रेडियों से हम यहां श्रीनगर में उसे सुनते हैं। आज से दो सौ वर्ष पहले नहीं •
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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