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थोड़ी सी बातें पिछले प्रश्नों के सम्बन्ध में कर लें।
यह जरूर पूछा जा सकता है कि यदि पता हो कि एक दुर्घटना होने वाली है तो क्या रुक जाना चाहिए। मगर क्यों रुक जाना चाहिए ? मैंने जो मेहर बाबा का उदाहरण दिया वह सिर्फ इस बात को समझाने के लिए कि क्या होने वाला है इसे भी जानने की पूर्ण सम्भावना है। लेकिन जो उन्होंने किया मैं उसके पक्ष में नहीं हूँ। उनका हवाई जहाज से उतर जाना या मकान में न ठहरना, इसके मैं पक्ष में नहीं हूँ। मेरी मान्यता यह है कि जीवन में अगर पूर्ण आनन्द, पूर्ण शान्ति उपलब्ध करनी है तो स्वयं को प्रवाह में ऐसे छोड़ देना चाहिए जैसे किसी ने नदी में अपने को छोड़ दिया हो, जो तैरता नहीं, सिर्फ बहता है, जो हो रहा हो, उसमें सहज बहता है। जीसस को जिस दिन सूली लगी उससे एक क्षण पहले उसने जोर से चिल्ला कर कहा, 'हे परमात्मा ! यह क्या करवा रहा है ?' शिकायत आ गई और परमात्मा गलत कर रहा है यह भी आ गया। और जीसस परमात्मा से ज्यादा जानते हैं यह भी आ गया। लेकिन तत्क्षण जीसस की समझ में भा गई बात कि कहने में भूल हो गई है। तो दूसरा वाक्य उन्होंने कहा 'मुझे क्षमा करो ! मैं क्या जानता हूँ ? तेरी मर्जी पूरी हो।' फिर इसके बाद आखिरी वचन जो उन्होंने बोला उसमें कहा कि इन सब लोगों को माफ कर देना क्योंकि ये लोग नहीं जानते कि ये क्या कर रहे है। वह उन लोगों की ओर इशारा कर रहा था जो उसे सूली दे रहे थे। और मेरी अपनी समझ यह है कि जिस क्षण जीसस ने कहा कि 'हे परमात्मा ! यह क्या कर रहा है, यह क्या करवा रहा है, यह क्या दिखला रहा है, तब तक वह जीसस ही थे और जैसे ही उन्होंने समग्र मन से यह कहा कि 'तेरी मी पूरी हो, ममा कर' उसी क्षण बह गइस्ट हो गए।