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________________ प्रश्नोत्तर - प्रवचन- १२ ३६९. लीं दीवार पर जिनमें भीतर कोई सम्बन्ध नहीं । लेकिन, ऐसी व्यवस्था की कि एक घड़ी में जब बारह बजेंगे तो दूसरी घड़ी बारह के घंटे बजाएगी । यह व्यवस्था हो सकती है । इसमें क्या तकलीफ है ? एक घड़ी में जब बारह पर कांटा जाएगा तो दूसरी घड़ी बारह के घंटे बजा देगी । कार्य-कारण सिद्धान्त मानने वाला कहेगा कि जब इसमें बारह बजते हैं तब इसमें बारह के घंटे बजते हैं । इनके बीच कार्य-कारण का सम्बन्ध है जब कि वे सिर्फ समानान्तर चल रही है । कोई सम्बन्ध वगैरह है ही नहीं । ह्यूम ने कहा कि हो सकता है कि प्रकृति में कुछ घटनाएँ समानान्तर चल रही हों। यानी इधर तुम आग में हाथ डालते हो उधर हाथ जल जाता है और दोनों के बीच कोई सम्बन्ध नहीं रहता । क्योंकि सम्बन्ध कभी देखा नहीं गया । घटनाएँ देखी गईं । तुम दोनों का सम्बन्ध कैसे जोड़ते हो ? तो ह्यूम ने बड़ी चेष्टा की कार्य-कारण सिद्धान्त को गलत सिद्ध करने की। अगर ह्य ूम जीत जाता तो पश्चिम में साइंस खड़ी न हो सकती । क्योंकि साइंस खड़ी हो रही है इस आधार पर कि चीजों के सम्बन्ध जोड़े जा सकते हैं । एक आदमी क्षयग्रस्त है, तो हिसाब से इलाज कर पाते हैं कि उसको जो कीटाणु हैं, वे दवा देने से मर जाएँगे । यह दवा उनकी मृत्यु का कारण बनेगी और मृत्यु कार्य हो जाएगी । तो हम इलाज कर लेते हैं । फलां बम पटकने से आग पैदा होगी, लोग मर जाएँगे तो बम बन जाता है । हम कारण कार्य के धर्म भी विज्ञान है और वह भी कार्य-कारण सिद्धान्त पर बड़ा है । अगर चार्वाक जीत जाए तो धर्म गिर जाए पूरा का पूरा । जो ह्य ूम विज्ञान के खिलाफ कह रहा है, वही चार्वाकों ने धर्म के खिलाफ कहा है : "लाओ, पिओ, मोज करो क्योंकि कोई भरोसा नहीं है कि जो बुरा करता है, उसको बुरा ही मिलता है, देखो एक आदमी बुरा कर रहा है और भला भोग रहा है । कहाँ कोई कारण का सम्बन्ध है इसमें ? एक आदमी भला कर रहा हैं और पीड़ा झेल रहा है । कोई कार्य-कारण का सम्बन्ध नहीं है ।" इसलिए चार्वाकों ने कहा : "ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।" अगर ऋण लेकर भी घी पीने को मिले तो पिओ क्योंकि ऋण चुकाने की जरूरत क्या है ? सबाल जसलो में घी मिलने का है । वह कैसे मिलता है, यह सवाल ही नहीं है । और तुमने ऋण में लिया और नहीं चुकाया, तो इसका बुरा फल मिलेगा, वह सब पागलपन की बातें हैं । कहाँ फल मिल रहे हैं ? ऋण लेने वाले मजा कर रहे हैं; न लेने वाले दुःख उठा रहे हैं । कोई कार्य-कारण का सिद्धान्त नहीं है। ह्यूम • २४
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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