________________
प्रवचन
३०७
बहुत सी व्यस्तताएं टूट गई। एक ही व्यस्तता रह गई कि स्वांस ही देखना है । अब यह ऐसी व्यस्तता है कि न इससे कोई धन कमाई का उपाय है, न इससे कोई लाभ है । यह एक ऐसी व्यस्तता है जिससे छलांग लगाने में कठिनाई नहीं पड़ेगी । यह एक ऐसी व्यर्थ व्यस्तता है कि अगर आप सबसे छूट गए तो इससे छूटने में देर नहीं लगेगो । जैसे मैं कहूँगा 'छोड़ें !' हो ये कि अब इसको छोड़ें। यह अभो सामायिक नहीं है । यह सामायिक के पहले की सोढ़ी हैं- सिर्फ छलांग लगाने को । जैसे नदी का किनारा है । वहाँ ता लगा हुआ है जिस पर खड़े होकर छलांग लगाई जाती है । अगर आप यहाँ पहुँच गए हैं तो अब एक ही छलांग में आप सागर में पहुँच सकते हैं ।
आप तो तैयार
जब तक हम कुछ भी कर रहे हैं तब तक हम चूकते जाएंगे वर्तमान से । जब हम कुछ भी नहीं करते तब हम उतर जाएंगे। लेकिन यह हमारी समझ से एकदम बाहर हो जाता है कि कोई ऐसा मौका भी हमें मिले जब हम कुछ भी नहीं कर रहे, बस हैं । और अगर यह समझ में आ जाए तो कोई कठिनाई नहीं है । इसमें क्या कठिनाई है कि कुछ क्षगों के लिए आप 'बस' हो जाएँ और कुछ न करें ? कमरे में पड़े हैं, कोने में टिके हैं, सिर्फ हैं । कुछ भी नहीं कर रहे हैं। बस हैं । आखिर होना इतना कठिन क्या है ? वृक्ष हैं, पत्थर हैं, पहाड़ हैं, चांद-तारे हैं, सब हैं और शायद वे इसलिए सुन्दर हैं कि समय में कहीं गहरे डूबे हुए हैं । हम शायद इसीलिए इतने कुरूप हैं, इतने परेशान, चिन्तित, दुखी और हैरान है क्योंकि समय से भागे हुए हैं, समय के बाहर छिटक गए हैं । जैसे जीवन के मूल स्रोत से कहीं सटका लग गया है, कहीं और हैं ।
जड़ें उखड़ गई हैं, हम
क्रियाएं हैं जो हमारी
शरीर की क्रियाओं
दो तरह की क्रियाएँ हैं । एक तो हमारे शरीर की निद्रा में शिथिल हो जाती हैं, बेहोशी में बन्द हो जाती हैं। को रोकना बहुत कठिन नहीं है । शरीर की क्रियाओं से कोई गहरी बाधा नहीं है। उसके भीतर हमारे मन की क्रियाएं हैं । वही हैं असली बाषाएँ क्योंकि वही हमें समय से चुकाती हैं। शरीर नहीं चुकवाता हमें समय से । शरीर का अस्तित्व तो निरन्तर वर्तमान में है। यह ध्यान रहे कि लोग आम तौर पर -साधक होने को स्थिति में शरीर के दुश्मन हो जाते हैं जबकि शरीर बेचारे को कोई दुश्मनो ही नहीं है । शरोर तो निरन्तर समय में है। शरीर तो एक चण भो न अतीत में जाता, न भविष्य में जाता है। शरीर नहीं है नहीं है। शरीर ने कभी भी किसी आदमी को नहीं भटकाया है बाड़ तक । भटकता