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________________ महावीर : मेरी दृष्टि प्रति कि यह रहा वर्तमान तब तक वह जा चुका है, तब तक वह बतीत हो चुका है। ____ तो महावीर आत्मा को 'समय' इस अर्थ में भी कह रहे है कि जिस दिन आप इतने शांत हो जाएं कि वर्तमान आपकी पकर में ना पाए, उस दिन आप सामायिक में प्रवेश कर गए। इसका मतलब यह हुमा कि इतना शांत चित्त चाहिए, इतना शांत, इतना निर्मल कि वर्तमान का जो कण है बत्यल्प, छोटा सा कण, वह भी झलक जाए। अगर वह भी झलक जाए तो समझना चाहिए कि हम सामायिक को उपलब्ध हुए। यानी समय के अनुभव को उपलब्ध हुए, समय को हमने जाना, देखा और अनुभव किया। अब तक हमने समय को अनुभव नहीं किया है। हम कहते हैं कि हमारे पास घड़ी है। हम समय नापते भी है। हम बताते भी हैं कि इस समय इतना बजा है। लेकिन जब हम कहते हैं-"इतना बजा है, वह बज चुका है।" जब हम कहते हैं कि इस वक्त आठ बजा है जितनी देर में हमने यह कहा कि आठ बजा उतनी देर में आठ बज चका। बड़ी आगे जा चुकी। जरा कण भी सरक गई, आगे हो गई। यानी हम जब भी कुछ कह पाते हैं, अतीत का ही कह पाते हैं। जब भी पकड़ पाते हैं, अतीत को ही पकड़ पाते हैं । ठीक वर्तमान हमारे हाथ से चूक जाता है। और अतीत कल्पना स्मृति है सिर्फ । वह है नहीं यहाँ। है वर्तमान । जो है, अस्तित्व जो है, वह अभी एक समय का है। और उस एक समय का हमें कोई बोध नहीं क्योंकि हम इतने व्यस्त हैं, इतने उलझे और मशांत है कि उस छोटे से क्षण की हमारे मन पर कोई छाप नहीं बन पाती । न हमें वह दिखाई पड़ता है। उससे हम चुकते ही चले जाते हैं। समय से निरन्तर चूकते चले जाते हैं । तो हम अस्तित्व से परिचित कैसे होंगे, क्योंकि जो अस्तित्व है समय भी वही है, बाकी सब या तो हो चुका या अभी हुमा नहीं। जो है, उससे ही प्रवेश करना होगा। और उसका हमें बोष ही नहीं हो पाता, उसे हम पकड़ ही नहीं पाते। तो महावीर इसलिए भी आत्मा को समय कहते हैं कि तुम आत्मा को उपलब्ध तब हुए जब तुम समय का दर्शन कर लो। उसके पहले तुम आत्मा को उपलब्ध नहीं हो। क्योंकि जब तुम अस्तित्व का ही अनुभव नहीं कर पाते तो तुम्हारे अस्तित्व का मतलब क्या है ? आत्मा तो सबके भीतर है सम्भावना की तरह, सत्य की तरह नहीं। जैसे एक बीज में छुपा हुआ है वृत-एक सम्भावना की तरह, सत्य की तरह नहीं। बीज वृक्ष हो सकता है। हम भी आत्मा हो सकते हैं । जब हम कहते हैं कि सबके भीवर
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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