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________________ २१६. महावीर : मेरी दृष्टि मे तीर्थ और मन्दिर जिस दिन पहली बार खड़े हुए, उनके खड़े होते का कारण बहुत ही अद्भुत था। वह यही था । अगर महावीर जैसा व्यक्ति इस कमरे में रह जाए कुछ दिन तो इस कमरे से उसका तादात्म्य हो जाता है और इस कमरे के रग-रम पर, करण-कण पर उसकी तरंगें अंकित हो जाती हैं। फिर इस कमरे में बैठना किसी दूसरे के लिए बड़ा सार्थक हो सकता है, बड़ा सहयोगी हो सकता है । इस कमरे में अगर एक आदमी ने किसी की हत्या कर दी हो, या आत्महत्या कर ली हो तो आत्महत्या के क्षण में इतनी तीव्र तरंगों का विस्फोट होता है- क्योंकि आदमी मरता है, टूटता है-कि सैकड़ों वर्षों तक इस कमरे की दीवारों पर उसको प्रतिध्वनियां अंकित हो जाती है और यह हो सकता है कि एक रात आप इस कमरे में आकर सोएं और रात आप एक सपना देखें आत्महत्या करने का । वह आपका सपना नहीं है । वह सपना केवल इस कमरे की प्रतिध्वनियों का आप के चित्त पर प्रभाव है । और यह भी हो सकता है, इस कमरे में रहते हुए आप किसी दिन आत्महत्या कर गुजरें - यह भी बहुत कठिन नहीं है । इससे उल्टा भी हो सकता है । लेकिन महावीर और मीरा जैसा कोई व्यक्ति इस कररे में बैठकर एक तरंगों में जिया हो तो यह कमरा उसकी तरंगों से भर जाएगा। इसके कण-कण में— क्योंकि उधर जो हमें कण दिखाई पड़ रहा है मिट्टी का, और यह जो हम में कण हैं उनमें कोई बुनियादी भेद नहीं है। विद्युत् के कण हैं और सब विद्युत् के कण तरंगों को पकड़ सकते हैं, तरंगों को देख सकते हैं । कमजोर आदमी को तरंगें दे देते हैं और शक्तिशाली आदमियों से उनको तरंगें लेनी पड़ती हैं । वह सब एक से ही बहुत - मैंने परसों बोधिवृक्ष की बात की थी। इस वृक्ष को इतता आदर देने का ओर तो कोई कारण नहीं है । वह वृक्ष ही है । बुद्ध उसके नीचे बैठकर अगर निर्वाण को भी उपलब्ध हुए तो क्या मतलब है ? लेकिन मतलब निश्चित है । इस वृक्ष के नीचे निर्वाण की घटना घटी तो उस क्षण में इतनी तरंगें बुद्ध के चारों तरफ विस्फोट की तरह फैली कि यह वृक्ष उसका सबसे बड़ा गवाह है और इस वृक्ष के कण-कण से उसकी तरंगों का अंकन है । और आज भी जो रहस्य को जानता है वह उस वृक्ष के नीचे बैठकर उन तरंगों को वापस अपने में बुला सकता है । आकस्मिक नहीं था कि हजार-हजार, दो-दो हजार, तीन-तीन हजार मील तक बौद्ध भिक्षु चक्कर लगाएं, दो क्षण उस वृक्ष के पैरो में पड़े रहने के लिए आते रहें । आकस्मिक नहीं है । इसके पीछे सारी की सारी विज्ञान की बात है ।
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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