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________________ महावीर : मेरी दृष्टि में ऐसी है कि आदमी कहीं और जाना चाहता है, घोड़ा कहीं और पाना चाहता है । इसलिए बड़ा तनाव है। पर घोड़ा वहाँ कैसे जाना चाहे जहाँ आदमो माना चाहे । घोड़ा, घोड़ा है, आदमी आदमी है। और आदमी को घोड़ा कैसे समझे और घोड़े को आदमी कैसे समझे ? घोड़ा किसी और रास्ते पर जाना चाहता है और मादमी किसी और रास्ते पर जाना चाहता है। तो बड़ी तनाव में दोनों उस चित्र में है। दूसरे चित्र में घोड़ा आनमी को पटक कर भाग गया है। असल में आदमी ने घोड़े पर चढ़ने की कोशिश की तो घोड़ा आदमी को पटकेगा। यानी जिस पर हम चढ़ेंगे वह हमको पटकेगा। आदमी को पटककर घोड़ा भाग गया है । आदमी पड़ा है परेशान और घोड़ा भाग गया है। तीसरे चित्र में आदमी घोड़े को खोजने निकला है । घोड़े का कहीं पता नहीं चल रहा । जंगल ही जंगल है। चौथे चित्र में घोड़े की पूंछ एक वृक्ष के पास दिखाई पड़ती है, सिर्फ पूंछ । पांचवें चित्र में आदमी पास पहुंच गया है, पूरा का पूरा घोड़ा दिखाई पड़ता है। घोड़े की पूंछ पकड़ ली है। और सातवें चित्र में आदमी फिर घोड़े पर सवार हो गया है और आठवें चित्र में वह घोड़े पर सवार होकर घर की ओर वापस लौट रहा है । नौवें चित्र में घोड़े को बांध दिया है । आदमी उसके पास बैठा है। घोड़ा बिल्कुल शान्त है, आदमा बिल्कुल शान्त है। दसवें चित्र में दोनों खो गए हैं, सिर्फ जंगल रह गया है, न घोड़ा है न आदमी। ये दस पूरी साधना के चित्र है। लेकिन आखिरी चित्र में दोनों खो गए हैं। लड़ाई भी वो गई है, द्वन्द्व खो गया है। नौ चित्रों में बहुत तरह से लड़ाई चलती रही है। जब तक दोनों है लड़ाई चलती रही है, कुछ न कुछ उपद्रव होता रहा है। लेकिन, आखिरी चित्र में दोनों ही खो गए हैं। अब न घोड़ा है, न घोड़े का मालिक, कोई भी नहीं है । खाली चित्र रह गया है। इसी प्रकार जिन्दगी में द्वन्द्व की लड़ाई है। क्रोष से हम लड़ रहे है, घृणा से हम लड़ रहे हैं, हिन्सा से हम लड़ रहे हैं, भोग से हम लड़ रहे हैं । जिससे हम लड़ रहे हैं, उस पर सवार होने की कोशिश कर रहे है। और बिस पर हम सवार होने की कोशिश कर रहे हैं, वह हमें पटके दे रहा है, बार-बार पटक रहा है। भोगी त्यागी होने की कोशिश करता है, रोज-रोज पटके खा जाता है, फिर गिर जाता है, फिर परेशान होता है। ___ एक घर में मैं मेहमान या कलकत्ता में। उस घर के बूढ़े बादमी ने कहा कि मैंने ब्रह्मचर्य को जीवन में तीन पार प्रतिज्ञा की। बहुत म्यंग्यपूर्ण बात थी क्योंकि ब्रह्मचर्य की तीन बार प्रतिज्ञा लेनो पड़े तो ब्रह्मचर्य है कैसा
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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