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महावीर के बचपन के सम्बन्ध में थोड़ी सी बातें कल सोची। जैसा मैंने कहा, तीर्थकर की चेतना का व्यक्ति पूर्णता को कर लौटा होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि महावीर के लिए इस जीवन में करने को कुछ भी बाकी नहीं रहा, सिर्फ देने को बाकी रहा है। पाने को कुछ भी बाकी नहीं रहा। यह बात अगर समझ में आए तो इस बात को गहरी निष्पत्तियां होंगी। पहली निष्पत्ति यह होगी कि साधारणतः महावीर के सम्बन्ध में जो यह समझा जाता है कि उन्होंने त्याग किया, वह बिल्कुल · व्यर्थ हो जाएगा। आज इस बात को समझ लेना जरूरी है, महावीर ने कभी भी भूलकर कोई त्याग नहीं किया। त्याग दिखाई पड़ा है महावीर ने कभी भी नहीं किया है। और जो दिखाई पड़ता है, वह सत्य नहीं है। क्योंकि जो दिखाई पड़ता है वह देखने वालों पर ज्यादा निर्भर होता है, बजाय इसके कि जो उन्होंने देखा। भोग से भरे हुए लोगों की किसी भी चीज का छूटना त्याग मालूम पड़ता है। और इसलिए महावीर के जीवन पर जिन्होंने लिखा उन्होंने रत्ती-रत्ती भर एक-एक चीज का हिसाब बताया है कि उन्होंने क्या-क्या छोड़ा। कितने बड़े महल बे, कितना बड़ा राज्य था, कितने हाथो और कितने घोड़े थे, कितने मणि-माणिक्य । इन सबका एकएक हिसाव किया है। वे हिसाब देने वाले भोगी चित्त के लोग थे, इतना तो निश्चित है क्योंकि इन्हें मणि-माणिक्य, घोड़े-हाथी और महल ही बात मूल्यवान मालूम होते थे। इनको महावीर ने छोड़ा, यह घटना इनको बड़ी चमत्कारपूर्व मालूम पड़ो होगी क्योंकि भोगी चित कुछ भी छोड़ने में समर्थ नहीं है। वह सिर्फ पकड़ सकता है, छोड़ नहीं सकता। हाँ उसे छुड़ाया जा सकता है, लेकिन वह छोड़ नहीं सकता। और जब वह देखता है कि कोई व्यक्ति सहज ही छोड़ कर पा रहा है तो इससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण और चमत्कारपूर्ण घटना उसे मालूम नहीं