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________________ प्रश्नोत्तरवचन-४ १११ माज, सारे आश्रम में एक ही चर्चा थी, भोजनालय में भी भिक्षु चर्चा कर रहे थे। वह चावल कूट रहा था। उसके पास से दो तीन भिक्षु चर्चा करते निकले कि बड़ी हद कर दी गुरु ने। इतने सुन्दर वचनों को, इतने श्रेष्ठ वरनों को कह दिया कचड़ा है। वह चावल कूटने वाला जो बारह साल से चुपचाप चावल कूटता रहा था, लोग उसको भूल ही गए थे। उसके पास से निकलते थे, तो कोन ध्यान देता था, फिर वे सब बड़े भिक्षु थे, ज्ञानी थे। वह साधारण चावल कूटने वाला चावल कूटते-कूटते हँसने लगा। उन भिक्षुओं ने रुक कर उसको देखा कि तुम भी हँसते हो, किस बात से हंसते हो ? उसने कहा कि ठोक ही गुरु ने कहा है कि क्या कचरा लिखा है। उन्होंने कहा : अरे ! तू एक चावल कूटने वाला। बारह साल से सिवाय चावल के तूने कुछ और कूटा नहीं और तू भी वक्तव्य दे रहा है इस पर । तुझको पता है कि धर्म क्या है। उसने कहा मुझको पता तो है पर लिखना भूल गया। पता तो मुझे हो गया लेकिन लिखना भूल गया, लिखें कैसे ! और धर्म क्या लिखा जा सकता है ? इसलिए मैं अपना चावल ही कूटता रहता हूँ। खबर तो मुझे भी मिल गई थी कि वह दरवाजे पर लिखने के लिए कहा था। लेकिन एक तो यह कि कौन गही की झंझट में पड़े। दूसरा यह कि लिखें कैसे। उन भिक्षओं ने सिर्फ मजाक में कहा-अच्छा, चलो हम लिख देंगे, तू बोल दे। तो उसने कहा-'यह हो सकता है।' धर्म के साथ अक्सर यह हुआ है। बोला किसी ने, लिखा किसी ने। यह हो सकता है क्योंकि हम जिम्मेदार न रहे। इससे कोई न कह सकेगा कि तुमने लिखा । हम सिर्फ बोलें । चल कर उसने कहा, मैं बोल देता हूँ.। उसने बोल दिया और उन भिक्षुओं ने दीवाल पर लिख दिया। वे जो चार लिखी पंक्तियां काट दी थीं गुरु ने, उनकी बगल में उसने दूसरी चार पंक्तियां लिखीं। उसने कहा : 'कोन कहता है कि आत्मा दर्पण की भांति है। जो दर्पण की भांति है उस पर तो धूल जम ही जाएगी। आत्मा का कोई दर्पण ही नहीं है, धूल जमेगी कहाँ ?' जो इस सत्य को जान लेता है, वह धर्म को उपलब्ध हो जाता है। . · गुरु भागा हुआ आया और उसको पकड़ लिया और कहा कि 'तू भाग मत जाना क्योंकि ऐसे लोग निकल कर भाग जाते हैं। तूने ठीक बात लिख दी है।' उसने कहा कि लेकिन मुझसे गलती हो गई है। मैं अपना चावल ही कूटना चाहता हूँ। मैं किसी का गुरु वगैरह नहीं होना चाहता। लेकिन उससे गुरु ने कहा कि तेरे बिना कोई चारा नहीं। तुझसे मेरा सम्बन्ध हो सकेगा पीछे भी। उसको अपनी गद्दी पर बिठाया और उसने कहा : मैं जानता था अगर कोई लिख
SR No.010413
Book TitleMahavira Meri Drushti me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherJivan Jagruti Andolan Prakashan Mumbai
Publication Year1917
Total Pages671
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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