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महावीर का जीवन सदेश
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मे वहादुरी मानने लगे और एक-दूसरे के सामने इस बात की डीग हाँकने लगे कि उन्होने शराववदी का कानून कैसे तोडा है। इसी शराववदी का हमारा इतिहास अमेरिका से भिन्न है। हमारे देश में बसने वाली सारी ही जातियो के दिल मे शराब के लिए नफरत है । नियमित रूप मे और खुले आम शराब पीने वाले लोग भी यह स्वीकार करते है कि शराव बुरी चीज है । उससे छूटने की शक्ति भले ही उनके भीतर न हो, लेकिन इसमे कोई उनकी मदद करे तो वे निश्चित रूप से शराब की लत से मुक्त होना चाहते है । सम्पूर्ण राष्ट्र का चरित्र शराववन्दी के पक्ष में होने के कारण हमारे देश मे शराववन्दी का कानून बनाना आसान सावित हुआ । कुछ अाधुनिक वृत्ति वाले विकृत लोग शराब के पक्ष मे दलील करते है सही। लेकिन ऐसे लोग तो इने-गिने ही हैं, और उनमे से कुछ तो यह कहते भी है कि हमारी पार्टी की नीति के नाते ही हम ऐसी दलील करते है।
ऐसे लोगो की बात हम छोड दे । मुझे कहना तो यह है कि यदि हम गष्ट्र के चरित्र का विकास कर सके, तो किसी भी 'वाद' की समाज रचना मे हम मनुष्य-जाति को सुखी बना सकेगे।
महावीर जैसे सत पुरुपो ने ससार को यह मार्ग दिखाया है। चरित्रवल वढायो, सयम सिद्ध करो, वासनायो को जीतो, असामाजिक वृत्तियो का नाश करो और राग-द्वप मे निहित हीनता को पहचान कर दोनो को हृदय से निकाल फेंको, तो हिंसा का मार्ग अपने आप क्षीण हो जायगा । यदि हिंसा को टालना है और अहिंसा की स्थापना करनी है, तो केवल राजतत्र को बदलने से यह ध्येय सिद्ध नही होगा, राष्ट्रसघ रचने से यह समस्या हल नही होगी। इसके लिए तो मनुष्य के स्वभाव मे सुधार करना होगा, सयम-रूपी तप करना होगा। यही सच्ची साधना है। कोई पामर मनुष्य यह कार्य नहीं कर सकता। बाहरी शत्रु से लडना आसान है, किन्तु भीतर के विकारो का नाश करना कठिन है। इसके लिए वीरत्व की आवश्यकता होती है। महावीर ने अपने भीतर इस शक्ति का विकास किया और दुनिया को उसे दिखा दिया।
महावीर स्वभाव से ही प्रयोग-वीर थे। उन्होने जो अनेक प्रयोग किये ये उन्हे हम तप कहते है। उस तप का मार्ग सब के लिए एक-सा नही