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महवीर का जीवन सदेश __ श्री विनोवा की दी हुयी व्याख्या सनातनी हिन्दू के लिये ठीक है। आज के व्यापक और सग्राहक समस्त हिन्दू समाज का उममे अतर्भाव नही होता। मैं तो ईसाई धर्म को भी हिन्दू धर्म के ही एक पथ की दृष्टि से देखता हूँ। णिव, विष्णु, गणपति, देवी और सूर्य इन पांच देवताओं के या उन्ही के अवतार-स्वरूप अन्य देवताओ की उपासना का समन्वय करके श्री शकराचार्य ने पचायतन पूजा चलायी। उमके वाद मिक्ख आदि अनेक सम्प्रदायो ने गुरुपूजा को छठा आयतन बनाया । उसके जैसे गुरु-पूजा को प्रधानता देने वाला पथ विश्वामी था ईसाई कहलाता है । हिन्दू धर्म के अन्दर उसे स्थान देने मे कोई एतराज नही होना चाहिये ।
__अभी-अभी मर्दुम-शुमारी (जन-गणना) के एक अधिकारी हमारे पास आये थे। नाम, उम्र, भापा आदि जानकारी पूछने के वाद उन्होने कहा"आप हिन्दूधर्मी ही हैं। उनके इस कथन का मुझे प्रतिवाद नही करना था। मै हिन्दू हूँ ही। लेकिन और धर्म ग्रथ पढने से और उन धर्मों के सत्पुरुषो के साथ जो कुछ सत्सग मिला, उससे मेरा सर्वधर्म समभाव वढ गया और मेरा अपना अपनी ही दृष्टि का सर्वधर्म सम-भाव विकसित हुआ । इसलिये मैंने उन महाशय से कहा “हाँ मैं हिन्दू तो हूँ, लेकिन सर्वधर्मी हूँ"। ' सर्व धर्मों के प्रति तटस्थ और निष्पक्षपात सहानुभूति और आदर रखने वाली हमारी सरकार को चाहिये कि वह मर्दुमशुमारी के द्वारा इस वात की भी जाँच और गणना करे कि मेरे जैसे सर्वधर्म सम-भाव वाले सर्वधर्मी कितने है।
फरवरी, १९५७