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________________ महावीर का जीवन मदेश वाकी के लोग जो कुछ करते हो वही किया करें, तो इससे समाज कभी प्रद्रोही अथवा अहिंसक वन ही नही सकता। हिन्दू धर्म ने एक ही बात कही है-और जैन धर्म उसमे आ जाता है, वह यह है कि कोई भी धर्म झूठा है ऐसा नहीं कहा जा सकता, प्रत्येक धर्म के सत्याश का प्राश्रय लेकर मनुष्य परम कोटि को प्राप्त कर सकता है और इसलिए धर्म-परिवर्तन करना व्यर्य है । इसी विचार मे स्याद्वाद के तत्त्व का सार प्रा जाता है । 'दूसरे लोग जो कुछ कहते हैं वह बिलकुल झूठ कहते है', ऐसा कहने वाले लोग पहले तो स्याद्वाद-मूलक जैन धर्म का ही द्रोह करते है। आप पैसा खर्च कर के जो पडित उत्पन्न करेगे उनसे आपका साहित्य तो खूब वढेगा, परन्तु धर्म का या जगत का उद्धार नहीं होगा । गाधीजी को कितने ही लोग उत्तम जैन-उत्तम हिन्दू-के रूप मे स्वीकार करते हैं । इसका कारण गाधीजी का पाडित्य नही है, परन्तु उनका चारित्र्य, उनका अनुभव और उनकी तपस्या है । वे ही गाधीजी कहते हैं कि इनमे से कुछ अच्छी-अच्छी बातें मुझे श्रीमद् राजचन्द्र से मिली है। और इन राजचन्द्र मे भी असाधारण पाडित्य नही या, उनमे था तपोमय जीवन और, विश्वव्यापी विशाल भावना । इन दोनो मद्गुणो को अपना कर आप जगत को जैन धर्म का सच्चा दर्शन करा सकते है। आज कुछ पाश्चात्य विचारक यह मानते है कि भारत ने अपना सदेश जगत को सुना दिया है और जगत ने उसे ग्रहण कर लिया है। अब भारत के पास जगत को देने के लिए कुछ रहा नही है, और इसलिए अब भारत को जीने का कोई अधिकार नही है। यदि अव हमे जगत को कुछ नही देना है और यदि हम मृतप्राय बन गये हैं, तो हमे ऊपर का अभिप्राय स्वीकार कर लेना चाहिये । यदि ऐसा न हो तो हमे अपने मे प्रेरणा, उत्साह, ओजस्विता और नव-निर्माण की शक्ति दिखानी होगी, अपनी विरासत को उत्तरोत्तर बढाना होगा और अपने अस्तित्व से जगत को समृद्ध तथा गौरवान्वित करना होगा।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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