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प्रकाशकीय
स्वर्गीय प्राचार्य काका कालेलकर साहब देश के प्रमुग्न मौलिक विचारक थे। गांधी दर्शन उनका विशिष्ट क्षेत्र रहा। अन्य विषय पर भी उन्होने लिखा । जैन दर्शन भी उनका प्रिय विपय रहा है। भगवान् महागेर और जैन दर्शन पर उन्होने कई लेख लिखे । जिनमे से कुछ लेख समय-समय पर सामयिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए व कुछ अप्रकाशित रहे । इन सब का सकलन इस पुस्तक के रूप में प्रस्तुत है । पुम्नक की विशेषता यह है। कि इसमे उनकी वैचारिक स्वतन्त्रना, सैद्धान्तिक-टिगता, स्पष्टवादिता व समन्वयवादिता स्पष्टत झलकती है। यह सम्भव है कि परम्पगगन विचागे से उनका मतभेद कई विन्दुग्रो पर रहा हो, पर जैमे उन्होो लिखा उसी तरह उनके लेख प्रस्तुत किये गये। यह आवश्यक नहीं कि उनके विचार एव इम सस्थान के विचार पूर्णस्पेण मेल खाए । पर इस मस्थान की नीति कि, वैचारिक स्वतन्त्रता एव स्पष्टवादिता का सम्मान किया जाय, के सन्दर्भ में उनके विचार ज्यो के त्यो प्रस्तुन किये गये है।
प्राचार्य श्री काका माहब का पार्थिव शरीर अब हमारे बीच नही है, पर इस अवसर पर हम उनके प्रति प्रादरपूर्वक भावभीनी हार्दिक श्रद्धाजलि अर्पित करते है।
पुस्तक की पाण्डुलिपि उपलब्ध कराने मे वहिन सरोजिनी नानावती, वहिन कुसुम शाह का विशेष योगदान रहा। श्री गुलाबचन्दजी साहब जैन, दरियागज दिल्ली ने उन्हे प्राकृत भारती का परिचय दिया और पाण्डुलिपि प्राप्त कराने के लिये विशेष प्रयास किया। यह सस्था दोनो के प्रति आभार प्रकट करती है।
राष्ट्र सन्त कवि उपाध्यायश्री अमरमुनिजी महाराज साहव ने मौन और ध्यानावस्था में सलग्न रहते हुये भी इसकी प्रस्तावना लिखी है इसके लिये सस्थान उनके प्रति हृदय से श्रद्धापूर्वक आभार व्यक्त करती है । महोपाध्याय श्री विनयसागरजी साहब सयुक्त सचिव,